सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

मैं कौन सा दीप जलाऊं?

मैं कौन सा दीप जलाऊ? अब से ठीक बीस घंटे बाद दीपावली के दीप घर-घर, गली-चौराहे जलने शुरू होंगे, मगर मैं दुविधा में हूं कि मैं कौन सा दीप जलाऊं? जलते हुए दीप अपने हिस्से का अंधियारा दूर करेंगे, पर क्या मेरे जलाए दीप मेरे हिस्से का अंधियारा दूर कर सकेंगे। मैं कौन सा दीप जलाऊं?-उस नौजवान की आत्मा की शांति के लिए कोई दीप जलाऊं, जिसके कोमल मन में राजनीति के अंधियारे ने ऐसा हिस्टारिया दिया कि वह अपना आपा खो बैठा और उस आदमी से बात करने के लिए बेकाबू हो गया, जो उसके लिए जिम्मेदार था। जो दो दिन पहले ही मुंबई पहुंचा था अपना कैरियर बनाने। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ उसके साथ कि मुंबई की चकाचौंध में वह अपने अस्तित्व को बिसरा चुका हो और बार-बार वही सवाल उसके दिमाग में कौंधने लगा हो, जो वहां से पिटकर लौटे दूसरे भाइयों के मन में कौंध रहा है।
क्या मैं उस आदमी के नाम पर भी दीप जला सकता हूं, जो वास्तव में अपने अस्तित्व और अपने भविष्य के अंधियारे को दूर करने के लिए मराठियों के बहाने पूरे देश में अंधियारा पैदा करना चाहता है। लोहे को लोहे से काटने की कहावत पर चलकर जो अंधियारे से अंधियारे को हराना चाहता है। या में बाजार के उस महानायक के नाम का दीप जलाऊं, जो गंगा-जमुनी भावनाओं के उद्वेग पर सवार होकर महानायक बना और हिंदी बोलने की शर्म में हिंदी की छाती पर खड़ी होकर माफी मांग गया। महानायक भी मुंबई में अपने अस्तित्व पर संकट देख रहा है, तो मैं उसके अस्तित्व की अक्षुण्ता की कामना में एक और दीप जलाऊं?
मुंबई शहर पर एक परिवार के दो महत्वाकांक्षी लोगों में से किसी एक की हुकूमत कायम रहने की जद्दोजहद से बुझ रहे दीपों में से मैं किसका दीप जलाऊं? या बेबड़ा मारकर सो गए उन लोगों के लिए दीप जलाऊं, जो अपने महानायक की तलाश में उनके झंडे के साथ अपने अस्तित्व के भ्रम को पाले हुए हैं और अभी भी सो रहे हैं। जो सो रहे हैं और सोते-सोते भयभीत हैं कि उनकी जमीन पर यूपी-बिहार के भइये क्यों इतने जाग्रत रहते हैं।
मैं बाटला हाउस की अतृप्त आत्माओं की शांति को एक दीप अवश्य जलाता, मगर अब मैं एक साध्वी के बहाने उस राजनीति का अंधियारा दूर करने के लिए कोई दीप क्यों न जलाऊं, जो मात्र अपने ओजस्वी भाषण की वजह से आज की राजनीति का साफ्ट टारगेट बन गयी, जिसके बहाने से मुस्लिम आतंकवाद बनाम हिंदू आतंकवाद की नई थ्यौरी गढ़ने की प्यास जाने कब से विकल कर रही थी।
आय के मामले में मंदी और व्यय के मामले में मंहगाई वाले इन दिनों में आखिर कोई कितने दीप जला सकता है और सावन हरे न भादों सूखे वाले मंहगे साक्षी भाव में मैं आखिर कितने दीप जला पाऊंगा। घी-तेल या मोम, चीनी, मिट्टी या चांदी के दीपों में से कौन सा दीपक पटना से लेकर मुंबई और बाटला से लेकर नंदीग्राम तक के अंधेरे को दूर कर सकेगा, कोई पहचान कर बता दे,मैं वही दीप जला लूंगा।

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन

सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन
Written by B4M Reporter
Friday, 24 October 2008 01:30

एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।

इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।

दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।

बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।

भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।

विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''

लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।

बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।

बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।

बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।

साभार-भड़ास

भीग रहा है वह

मंद मंद बह रही इस हवा का
कोई अतीत तुम्हें याद है
जिसके स्पर्श से छत पर अकेले बैठे
एक आदमी ने गुनगुनाते हुए
मीलों लंबा पत्र लिखा था

दुनिया की सबसे पवित्र नदी में स्नान करने के बाद
जिसने एक रंग मलना शुरू किया
और रंग धुलने के लिए एक बारिश का इंतजार करता रहा

जिसके बारे में तुमने कहा था
त्वचा के आवरण में वह कितनी ही दीवार खड़ी कर ले
मैं उसके अंदर के आदमी को हाथ पकड़कर बाहर निकाल सकती हूं

कभी सौ बार थपकी देकर सुलाया गया था उसे
और एक बार बिना थपकी लिए वह तुम्हारी
थकान में गुम हो गया था

जब सभी छतें खाली हो गयी
उसके मरने के बाद
वह बादलों को भीगता हुआ मिला था
उसी छत पर अपने अकेलेपन को बांटता हुआ

रविवार, 19 अक्तूबर 2008

ईश्वर को समझने में

देवताओं ने पहले ईश्वर को ढूंढा
या ईश्वर ने देवताओं को
आदमी की समझ में यह कभी नहीं आया
या दोनों ने मिलकर आदमी को ढूंढा
आदमी यह भी पता नहीं लगा पाया
और ईश्वर को ढूंढने में लगा रहा।

देवताओं को आदमी की जरूरत ज्यादा है
या ईश्वर को या फिर दोनों को
आदमी के लिए यह परीक्षण पाप बराबर रहा
और उसने अपनी जरूरत बना लिए देवता और ईश्वर।

नाती-पोतों ने आदमी को खूब समझाया
खूब तर्क दिए पर सिरफिरा आदमी ढूंढता रहा ईश्वर
और पीढ़ियां होती चली गयीं अभिशप्त।

तिराहे-चौराहे मुस्कराता हुआ
खड़ा मिलता है ईश्वर
आदमी रोते हुओं की पहचान
करने में होता रहता है खुश
हमेशा से ईश्वर गले लगा रहा है
हंसते हुए आदमी को और
रोते हुए उसके दरबार के बाहर
जाने कब से खड़े हैं लाइन में।

पंक्तिबद्ध लोग लामबंद होना चाहते हैं
पम्फलेट बंटवाना चाहते हैं-
ईश्वर को समझने में गलती मत करिए
ईश्वर को जरूरत है आदमी की, पर हंसते हुए आदमी की

पुरखों ने कैसी गलतियां की हैं
ईश्वर को समझने में।।

तुम्हारी उड़ान का पंख

मैं मिलूंगा
भीड़ में फीके, रंग उड़े
और रंग-बिरंगे चेहरों के बीच
पहचान वाली पगडंडियों पर

मैं जहां भी हूं, दूर तुमसे, दूर सबसे
दूर अपने को छिपा रखने के कई रोगों से
मैं जा रहा हूं पानी की शक्ल में
बुलबुला होता हुआ
हवा के आकार में बनता-बिगड़ता
पर मिलूंगा पानी से बाष्प होने के मध्य

धड़कनें गिनता हुआ मैं मिलूंगा
कुछ भी अशेष गुनगुनाता हुआ
धूप की तरह
किसी को भी उसकी पहचान कराता हुआ
जहां कहीं भी रहूंगा मैं
रहूंगा तुम्हारी उड़ान में पंख लगाता हुआ

स्मृतियों के धुंधलके में
तुम्हारी आवाज को सुनाता
फेरी वाले की जगह
गली-गली, चाहें रहूं किसी भी वेश-भाषा में
पर मिलूंगा तुम्हारे ही कारणों में।।
(1988)

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

बस चले तो पानी के दीये जला लें

यदि दीये पानी से जल सकते तो दीपावली पर इस बार लोग जरूर घी-तेल के दीये जलाने से परहेज कर सकते थे और अगर मिठाइयां शक्कर की जगह गुड़ से बनतीं तो वह निश्चित ही आज के अपने भावों से ज्यादा मंहगी मिलतीं। शेयर बाजार के डूबने से अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है तो जरूर दीपावली तक कइयों के आशियाने उड़ने वाले हैं।
वित्त मंत्री मानें न मानें पर बाजार से तरलता गायब है और हर खास ओ आम को अपने सपने तोड़ने के लिए कठोर फैसले करने पड़ रहे हैं। सेक्टर कोई हो, सन्नाटा हर ओर पसरा हुआ है। श्राद्ध पक्ष के बाद उठने वाले बाजार नवरात्रि बीत जाने के बाद भी दोहरी कमर के दर्द को सहला रहे हैं। आलम यह है कि गाय का शुद्ध घी पांच सौ रुपए किलो तक में नहीं मिल रहा, डेयरी का घी अमूल के डिब्बा बंद से ज्यादा मंहगा है। चीनी बीस रुपए किलो मिल रही है तो गुड़ ने सीजन शुरू होने से पहले अपनी औकात बढ़ा ली है। यह 22 रुपए किलो बिक रहा है।
सब्जियां इतनी मंहगी हैं कि एक किलो भिंडी से किसी ब्लू चिप कंपनी का एक शेयर खरीदा जा सकता है और एक किलो आलू की कीमत में स्माल कैप की कई कंपनियों के शेयर हासिल किए जा सकते हैं। अठारह साल पहले मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री की हैसियत से जिस पूंजीवाद को स्थापित किया था, आज उनके प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम महीनों में न केवल वह दम तोड़ रहा है, बल्कि मथुरा जैसे जनपद में भी आम आदमी इस आदमखोर अर्थव्यवस्था का आए दिन शिकार बन रहा है।
हालात वर्ष 90 के दीपावली पहले जैसे हैं। तब भी बाजारों के सन्नाटे खबर बनते थे, लेकिन तब मंदड़ियों का राज था, सरकार ने उससे निबटने को कई कदम उठाए थे और रुपए के प्रचलन पर जोर दिया था। आज रुपया इतना सर्कुलेशन में है कि बाजार से तरलता गायब है, बैंकों में पेमेंट का संकट है। नकली नोट बाजार में हों न हों, पर बैंकों के कैश काउंटर और एटीएम से धड़ाधड़ बाहर आ रहे हैं। कोई दिन शायद ही ऐसा जाता हो, जब मथुरा की किसी न किसी बैंक में किसी की गड्डी में कोई नकली नोट न निकलता हो।
कालोनाइजर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं तो दीपावली की पूर्व संध्या पर उनके फ्लैट और प्लाट की बुकिंग न के बराबर है। थोक में गिफ्ट बांटने वाले सस्ते सौदे के लिए दिल्ली तक की दौड़ लगा रहे हैं। बड़े दुकानदार काला बाजारी से नहीं चूक रहे तो बाट-माप विभाग ने सात सौ से लेकर बारह सौ रुपए तक बांट चेक करने का अभियान चलाया हुआ है। रेडीमेड गारमेंट की दुकानों से ज्यादा शहर का मंगल बाजार लोकप्रिय हो रहा है।
कर्मचारियों के हवाले दीवाली----------------------
दीपावली इस बार काली होने के कारणों में एक कारण और भारी पड़ सकता है, वह है वेतन भुगतान। दीवाली इस बार महीने के अंत में पड़ रही है, यानि 28 अक्टूबर को। वेतन कर्मियों के विभाग और हम जैसे कर्मचारियों के मालिक दीपावली से पहले वेतन दे पाएंगे, यह तो अभी तय नहीं है, पर कर्मचारियों के सितंबर माह का वेतन इस महीने के पहले पखवाड़े में ही स्वाहा हो चुका है, जाहिर है बाजार में खरीददारी इसलिए भी नगण्य है।
चतुर्वेदी परिवारों में डालर स्माइल
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बाजार का आसर सकारात्मक भी हो सकता है। रुपए में पच्चीस फीसदी तक की गिरावट से स्थानीय चतु्र्वेदी समाज के सैकड़ों परिवारों में दीपावली पर डालर की चमक नजर आ रही है। एक अनुमान के मुताबिक स्थानीय इस समाज के करीब हजार-आठ सौ लोग दुबई और यूएई में काम कर रहे हैं। पिछली दीपावली पर डालर की कीमत गिरने पर उनकी कमाई सिकुड़ने लगी थी, लेकिन अब रुपए के मुकाबले डालर 49 रुपए के आसपास पहुंचने के साथ ही उनके परिजनों के चेहरे खिलने लगे हैं। दुबई से यहां अपने परिवारों में पैसे भेजने का उत्साह भी बढ़ा हुआ है।
हाय, इस सप्ताह क्या होगा--------------------

शेयर बाजार लगातार नीचे आ रहा है। अमेरिका का सब प्राइम संकट एक निजी बैंक को भी प्रभावित कर गया है। ऐसी अफवाह ने बैंक में सावधि जमा करने वालों का भी दम निकाल रखा है। उक्त बैंक ने छोटे लोन देना तो एक महीने से बंद कर रखा है, अब इन हाउस पेमेंट रुके हुए हैं और एफडी के पेमेंट भी सही सलामत नहीं हो पा रहे। कहते हैं कि इस बैंक का चालीस फीसदी पैसा अमेरिका में निवेशित होने से इसे भारी घाटा हुआ है। तो क्या केंद्रीय सरकार, वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक निवेशकों को जो ढांढस बंधा रहे हैं, वह दिखावा है। सच कुछ भी हो, कहा जा रहा है कि अगर यह बैंक दिवालिया हो गया है तो इस सप्ताह सेंसेक्स आठ हजारी भी हो सकता है औऱ तब निफ्टी 2100 के पास आएगी और शेयर निवेशकों के साथ-साथ आम आदमी की दीपावली भी काली होगी। कहीं ऐसा न हो कि रविवार तक मेगा स्टार अमिताभ बच्चन की सेहत की दुआ कर रहे लोगों को अर्थव्यवस्था के लिए दुआ करनी पड़ जाए।

शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

मैं हूं तुम हो और ये चांदनी....

सुहाग रात के तोहफे में आप अपनी पत्नी को क्या दे सकते हैं। कुछ भी। हर वो चीज जो पैसे से खरीदी जा सकती है, लेकिन मैंने एक ऐसा तोहफा अपनी पत्नी को दिया, जो पैसे से नहीं खरीदा जा सकता था। अभी रात के एक बजकर 47 मिनट हुए हैं। नेट पर काम करते-करते आंख दुखने लगीं तो मैं छत पर चला गया। धवल चांदनी रात शरद ऋतु की और मेरे कमरे की छत उतनी ही सद्द स्नग्धि, जितनी कि तब थी। मैं मुंडगेली से बाहर की तरफ झांका कि देखूं दिन भर फांय-फांय करने वाला और गला काटकर पैसा कमाने वाला आदमी क्या किसी नई विधि से नींद लेता है। सब निढाल पड़े थे और बेसुध थे। कल्लू जग रहा था, वह मुझे देखते ही बोला-आधी रात को जाग रहे हैं साहब। मैंने कहा-अबे तू क्यों जग रहा है। बोला-आज मेरी शादी की सालगिरह की रात है। मुझ पर ज्यादा देर तक छत पर रुका नहीं गया। कमरे में आया और डायरी खोली। जो तोहफा मैंने दिया था, आज उसे सार्वजनिक कर रहा हूं। मुझे लगता है कल्लू इस एहसास को रात भर जीएगा

दोनों खिड़की से झांक रहा है चांद

मेरे सिर के ऊपर आसमान है
मेरे पैरों तले जमीन है
शेष जो भी है इधर-उधर सब
निरर्थक है..

मेरे हाथों में तुम्हारा चेहरा है
मेरे होठों पर तुम्हारे होंठ
मेरे सीने पर तुम्हारा वक्ष है
गर्म सांस कुछ गुनगुनाना चाह रही हैं
मैं उठा हूं तुम पर
एक पुरातात्विक कृति सा
तुम परियों सी अंगड़ाई में
बहुत कुछ कहने,सुनने,जानने,मचलने
मचलकर जानने और जानकर मचलने को हो रही हो व्याकुल

इसके अलावा शेष जो भी है आगे-पीछे
लोक-परलोक समझने का है, मेरे लिए
निरर्थक है..

मेरी आंखों में सपने हैं
सपनों का घर है
घर में एक थाली दो कटोरियां हैं
जलाने के नाम पर एक बोतल किरोसिन
और स्टोव है
खाने को हरे शाक शुद्ध गेंहू की चपातियां हैं
एक बिस्तर है
दो खिड़कियां हैं
चंदा दोनों खिड़कियों से झांक सकता है
तुम हो, मैं हूं
और अगर कोई आने वाला भी है तो
वह जाने कि उसे आना है भी कि नहीं
इसके अलावा शेष जो भी सोचने का है, मेरे लिए
निरर्थक है..

मैं हूं, तुम हो
तुम हो, मैं हूं
भूखे-प्यासे
सुख हैं दुख हैं हमी हैं
यज्ञ हैं याजक हैं
कृत्य हैं कृतिया हैं हमी हैं
हमी चेतन हैं या कहें तो
हमीं नश्वर हैं
हमीं नूतन हमीं पुरातन
दर्शन हैं परिभाषाएं हैं

कहने को हमारे पास इतने शब्द हैं
जितने आसमान में सितारे
पर हमारे सितारे गर्दिश में हैं
शब्द हमने दूर धकेल दिए हैं-
अनुभूतियों के पिंड में
पिंड में हवा है हवा में योग हैं
यही जीवन है यही भोग है

शेष जो भी है-
सुंदर असुंदर, मेरे लिए
इस समय निरर्थक है..

आसमान में चमकेंगी टिप्पणियां

यह कविता मैंने रवीश कुमार जी के ब्लाग कस्बा पर पढ़ी, तो मुझे लगा कि यह मेरे जैसों के लिए लिखी गयी है, जो दिन भर पैदल चलने के बाद भी मोटू हो रहे हैं। वैसे इसके निहितार्थ मैंने दूसरे भी निकाले और झटपट इस पर कमेंट लिखने बैठ गया। लेकिन यह क्या हुआ, पूरे दिन खबरों की रेलमपेल से भन्नाया हुआ भेजा इस कदर ताजा हुआ कि कमेंट तुकबंदी में चला गया और रवीश जी ने उसे पोस्ट करने की हरी झंडी दे दी। आज एक सप्ताह बाद जब कुछ लिखने का मौका मिला तो उनकी ओरीजनल कविता के साथ अपने तुकबंदी मय कमेंट को यहां पोस्ट करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। मुझे लगा कि इसे पोस्ट करना चाहिए तो एक अलग कंसेप्ट भी सूझ गया। और वह यह कि क्या यह एक नहीं शुरूआत नही हो सकती है। हम ब्लागिए अपने-अपने ब्लाग जितनी तन्मयता से लिखते और इसे समय देते हैं, उतनी तबज्जो दूसरे ब्लागों को नहीं देते। किसी के भी ब्लाग पर चले जाओ, टिप्पणी से पता चल जाता है कि केवल इसलिए औपचारिकता निभायी गयी है कि दूसरा भी आपके ब्लाग पर आकर एक टिप्पणी दे जाए। जबकि एक विचार को लेकर की जाने वाली टिप्पणियां ब्लाग और समाज में बहस का मंच खड़ा कर सकती हैं और समृद्ध होते इस प्लेटफार्म को न्यूज चैनलों और अखबारों से ज्यादा सार्थक बना सकती हैं। क्या पता किसी दिन विस्तार और आधार पाने के बाद टिप्पणियां साहित्य में जगह बनाने लगें।

तुम बहुत मोटे हो गए हो..व्हाट इज़ रांग विद यू
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इक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा, हवायें ले उड़ेंगी मुझे

बादलों पे मेरा घर होगा, भूख से बिलखते इंसानों की तरह

अंदर धंसा हुआ पेट होगा, गड्ढे हो जायेंगे दोनों गालों में

ग़रीबी रेखा से नीचे के रहने वालों जैसा मेरा स्तर होगा

खाये पीये अघाये लोगों के बीच मैं किसी हीरो की तरह

बड़े आदर के साथ, मचलती नज़रों के बीच बुलाया जाऊंगा

इक जिन जब मैं पतला हो जाऊंगा, हवायें ले उड़ेंगी मुझे
Posted by ravish kumar at Friday, October 03, 2008 7 comments

Pawan Nishant said...

एक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा
खंभे पर लटका मिलूंगा या
तारों पर चल रहा होऊंगा,
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के जैसी
सड़क की तरह बिछा मिलूंगा अपने गांव में
पर नहीं जाऊंगा दूसरे शहर
सबसे पहले अपने अंदर के आदमी से लड़ूंगा
और दोनों को लड़ते देख सकूंगा साक्षी भाव से
एक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा
पतले आदमी का पसीना
इत्र की तरह खुश्बू बिखराता जाएगा
गांव,मोहल्ला,गली,दिल्ली और कोलकाता तक
और अगले चुनाव में समर्थन देने से पहले
प्रकाश करात को सौ जगह दस्तखत करने पड़ेंगे
पतले आदमी के जिस्म पर
pawan nishant
http://yameradarrlautega.blogspot.com

October 5, 2008 12:49 AM

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

ऊंट ऊंटनियों के लिए नहीं होते

ऊंट जैसा कि सब जानते हैं, ऊंटनियों के लिए होते हैं। ऊंट, ऊंटनियों से उतना ही प्यार करते हैं,जितना कि ऊंटनियां उनसे करती हैं। ऊंट पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी ऊंटनी वास्तव में उससे कितना प्यार करती है। दोनों वैसे तो रेगिस्तान में ही रहते आए हैं, मगर इस ऊंट ने घर में रहना पसंद किया, सो सबसे पहले उसने घर की छत हटवा दी। ऊंट और छत एक साथ नहीं रह सकते। दोनों में जनम जात का बैर है।
ऊंटनी दिनभर घर के कामकाज निपटाती और ऊंट दिन भर बाहर मुंह मारता फिरता। ऊंट कहां-कहां मुंह मारता, ऊंटनी को यह पता नहीं चल पाता था और उस पर इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता था। उसने क अक्षर से शुरू होने वाले एकता कपूर के सीरियल जो नहीं देखे थे। ऊंट ने घर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की थी, जिससे ऊंटनी का चरित्र खराब हो। ऊंटनी को भी विश्वास था कि ऊंट उसके अलावा और किस पर डोरे डाल सकता था, लेकिन ऊंटनी गलतफहमी में थी।
उसका ऊंट इन दिनों छह साल से चल रहे एक सीरियल में लगभग बुढ़ा गयी हीरोइन से इश्क लड़ा रहा था। हीरोइन अपना शॉट ओके होने के बाद ऊंट पर आकर बैठ जाती और ऊंट उसे स्टुडियो के बाहर-भीतर यह दिखाकर लाता कि एक वही हीरोइन नहीं है, जो इस ऊंट के प्यार में पड़ गयी है, और भी कई एक्ट्रेस हैं, जो ऐसे ही टाइम पास कर रही हैं। ज्यादातर एक्ट्रेस कुत्तों के प्यार में पड़ी हुई थीं और एक बड़ी हीरोइन एक सूअर टाइप आदमी के साथ चिपकी हुई थी। एक नामी एक्ट्रेस एक गधे के इश्क में पड़ चुकी थी और सारे गधे इस बात पर गर्व महसूस कर रहे थे कि गधे भी इश्क कर सकते हैं। मिसेज गधी वैसे इस नए घटनाक्रम से खुद को अपमानित महसूस कर रही थी, यह उसके प्यार के साथ बड़ी चीटिंग थी, लेकिन उसने अपने गधे का स्टेट्स बढ़ने के साथ ही उसे माफ भी कर दिया था।
मेनका गांधी की चिट्ठी लेकर इन दिनों हर कोई जानवरों के पास पहुंच रहा था। बालीबुड का प्रेम तो इन दिनों कुछ ज्यादा ही उमड़ने लगा था, यह तो ऊंट को पता था, लेकिन उसे यह जानकर बड़ी हैरानी हुई कि एक हीरो एक ऊंटनी के इश्क में पड़ गया है। मामला गंभीर था, सो ऊंट उस बुढ़ाती हीरोइन को अपनी पीठ से फेंक कर तेजी से अपने घर की ओर भागा। घर पर ऊंटनी नहीं मिली तो ऊंट बिलबिला गया। हांफता हुआ दौड़ने लगा। ऊंटनी उसे घर की छत पर बैठी मिली। छत रेगिस्तान में पड़ी हुई थी, लेकिन ऊंटनी उसे अकेली मिली। उसकी जान में जान आयी। ऊंटनी जोर-जोर से हंस रही थी।
बहुत दूर एक ऊंटनी दो कुत्तों के साथ खेल रही थी। दूसरी, एक सूअर के साथ फेरे ले रही थी। कुछ ऊंटनियां टपोरी टाइप लड़कों को लाइन मार रही थीं। कुछ ऊंटनियों को एक डायरेक्टर सा दिखना वाला आदमी समझा रहा था कि ऊंटों ने वास्तव में उनके साथ अच्छा नहीं किया, पर वह चिंता न करें। वह अपने वृत्त चित्र में दिखलाएगा कि ऊंटनियों ने किस तरह जीवन से समझौता किया और अपने कद की परवाह न करते हुए छोटे कद वालों को हमेशा सम्मान बख्शा है।

बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

मेरी प्रार्थना

(गांधी की स्मृति में एक अहिंसक प्रार्थना)

देवता देख लें
समझ लें कर लें चिंतन
बाद में उनका स्यापा
माना नहीं जाएगा
कि मैंने जो किया गलत किया
यह वह शहर है
जहां देवता भी दिखायेंगे बुजदिली
तो शामिल कर लिए जायेंगे
गुनहगारों की जमात में
देवता देख लें समझ लें और सुना दें
अपने हथियारों उपकरणों से निकलने वाला
तमतमाता हुआ अंतिम फैसला
उनके अंत से पहले

मैं प्रार्थना जरूर कर रहा हूं मगर
देवताओं, तुम्हें सुनने के लिए...
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मेरे बारे में

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पेशे से पत्रकार और केपी ज्योतिष में अध्ययन। मोबाइल नंबर है- 09412777909 09548612647 pawannishant@yahoo.com www.live2050.com www.familypandit.com http://yameradarrlautega.blogspot.com
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