कुछ अवसाद सा घुल रहा है मौसम में
धूप के साथ-साथ
धूप डरी हुई है
कुछ दिनों से
पहले धूप होती थी खिलंदड़ी
चाहे जहां आकर बैठ जाती थी
पक्की छत पर
छत की मुंडेर पर
कच्चे आंगन में, बरामदे में
पूरा घर और घर के बाहर
अपने आप उग आयी अयाचित घास पर
पहले धूप मांगती थी-
खुली खिड़की
खुला रोशनदान
हो सके तो छोटा सा कोई संद या मोखला
जब सबको था विश्वास
धूप नहीं छोड़ेगी साथ
मरते दम तक
पहले कोई नहीं करता था बात
धूप के बारे में
धूप भी नहीं चाहती थी करे कोई बात
उसके बारे में
जब धूप थी, हम थे
हम थे और हमारा संसार था
पर नहीं था कोई तो धूप और हम
पहले धूप बहुत गरम थी न ठंडी
बस गुनगुना करती थी तन को
तन पर पड़ी कमीज को
कमीज की जेब में रखे ठंडे प्रेम पत्र को
हम कभी खर्च नहीं करते थे बीस रुपया
कलेंडर को कि कब आएगा माघ-अगहन
डरी हुई धूप देखकर
फुसफुसा रहे हैं हम
हम जानते हैं लगातार समा रहा है
हमारे भीतर डरी हुई धूप का डर
डर का अवसाद
हम समझ रहे हैं कि
डरी हुई है धूप
और डर बन रहा अवसाद
डर झांक रहा बार बार
मन से बाहर
जहां धूप इस तरह दिखती
कि केवल तन को गुनगुना करेगी
पर मन को भी गुनगुना कर देती थी
हाइवे पर खड़ी है धूप
और बेरियर पर टोल टैक्स मांगा जा रहा है उससे
जाने क्यों ठंडा हो गया है धूप का भेजा
The worldwide economic crisis and Brexit
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Brexit is a product of the worldwide economic recession, and is a step
towards extreme nationalism, growth in right wing politics, and fascism.
What is t...
8 वर्ष पहले
5 टिप्पणियां:
धूप के बारे में बहुत रोचक कविता लिखी है आप ने
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
बहुत बढ़िया धूप कविता
wah
mene bhi jaanaa tum bhi kavita likhte ho, vese kavita to is jivan ka ras he aour jise shabdo ko bandhna aata he vo rachana kar hi leta he..tum paripakva kavitabaaz ho yaar.
bahut khoob dhoop ko utara he..jivan ki dhoop ab dhalan par he dost...ese me kavitaye shaam ka ahsaas karati he
Jeevan aur prakriti ke bich adbhut tartamya sthapit karti aapki yah kavita pure parivesh par gambhir vyangya karti hai.
Shubkamnayen.
आपकी कविता यहाँ पर भी है इसे देखे |
http://krazzysaurabh.blogspot.com/2009/01/blog-post_9390.html
इस सौरभ नामक चोर को क्या सज़ा दे आप तय करे |
शुभचिंतक|
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