tag:blogger.com,1999:blog-14561025370908372552024-03-08T04:19:55.151-08:00या मेरा डर लौटेगाPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.comBlogger48125tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-16528691869316711502012-02-14T10:26:00.001-08:002012-02-14T10:28:49.512-08:00क्यूं मुझे हैरां देखोकौन कहता है कि मुझे हैरां देखो<br />मेरा खोया खोया सा चेहरा देखो<br />जाओ सो जाओ रात का वक्त है<br />नींदों में क्यूं खुद को परेशा देखो<br />सुबह सुन लेना अभी कह न सका<br />सूखी आखों में पानी ठहरा देखो<br />मेरी आदत में है यूं रूठते रहना<br />छोटी बातों में खुद बिछड़ा देखो।।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-22972369443482620792012-02-14T10:26:00.000-08:002012-02-14T10:28:06.508-08:00क्यूं मुझे पैरां देखोकौन कहता है कि मुझे हैरां देखो<br />मेरा खोया खोया सा चेहरा देखो<br />जाओ सो जाओ रात का वक्त है<br />नींदों में क्यूं खुद को परेशा देखो<br />सुबह सुन लेना अभी कह न सका<br />सूखी आखों में पानी ठहरा देखो<br />मेरी आदत में है यूं रूठते रहना<br />छोटी बातों में खुद बिछड़ा देखो।।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-6686655862556683072011-12-31T08:30:00.000-08:002011-12-31T08:31:55.238-08:00नव वर्ष की शुभकामनाएंजिस तरह के हो<br />उसी तरह से देना चाहता हूं <br />मैं तुम्हें नए साल की शुभकामना<br />जितने तरीके से समझ सकते हो तुम<br />उतने तरीके से भी।।<br />मैं तुम्हारे इरादों में शामिल हूं<br />और घटनाओं में भी, जिस तरह <br />शामिल हो गया नए साल का यह पहला दिन <br />तुम जो चाहो मांग लो मुझसे <br />और न चाहो मुझे तो कोई बात नहीं<br />और न मांगों तो भी कोई बात नहीं<br />डूबते जहाज पर तुन्हारे साथ <br />लाइफ जैकेट हूं मैं और आसमान में उड़ते <br />सपने की पहली उड़ान मैं हूं। <br />तुम बोलोगे हैप्पी न्यू ईयर <br />और मैं कहूंगा..यह भी कहने की क्या जरूरत है<br />जब शामिल हो तुम मेरी जिंदगी में <br />मुझे खुश करने के लिए <br />और मैं तुम्हारे हर दिन हर पल की बाजीगरी में<br />फिर भी तुम चाहो तो मेरे सभी दोस्तो तुम <br />कह सकते हो मुझसे कुछ भी मुबारकवाद में<br />पर नए साल में तुम्हें महसूस करने का एकमात्र रिजोल्यूशन है मेरा...<br />मेरी तरफ से नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।।।।।।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-18786411276625449512010-12-12T08:59:00.000-08:002010-12-12T09:01:50.463-08:00और लुटा देनी हैमुझे तुम्हारे सबसे भीतर बैठे इंसान से मिलना है<br />उससे भी भीतर सपने बुन रही लड़की से<br />मांगना है खुला आसमान<br />गुलाबी होठों पर जो सबसे ज्यादा अच्छी लगेगी<br />ऐसी चमक जिंदगी की फैलानी है मुझे<br />तुम में ढूंढनी है मुझे अनगिनत बेशुमार खुशी<br />और लुटा देनी है<br />तुम्हारे ही अकेलेपन मेंPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-17387644028661477192010-05-06T12:03:00.000-07:002010-05-06T12:07:05.081-07:00तुम फिर भी गूगल करोगीतुम कितना भी गूगल कर लेना<br />तुम्हें मेरा प्रोफाइल नहीं मिलेगा<br />ई-मेल आईडी नहीं मिलेगा<br /><br />जिस दिन तुम खुश होगे<br />दुखों की लंबी थकान के बाद<br />तुम्हें दुख का यह भी चिह्न नहीं मिलेगा<br /><br />मुझे पत्र में लिखकर बताना चाहोगे<br />यह जानते हुए भी कि मेरा पता तुम्हारे पास नहीं है<br />तुम पत्र लिखना खत्म नहीं करोगे सारी रात<br />यह जानते हुए भी कि कभी नहीं पढ़ा सकोगे मुझे <br />बे-सिर पैर की बातें कहोगे उसमें,पहले की तरह<br /><br />और वे बातें जिनसे दुखों ने हार मान ली और<br />सुखों के लिए छोड़ दिया चौड़ा रास्ता <br />यह जानते हुए भी पत्र लिखते-लिखते <br />बार-बार तुम्हें याद नहीं आएगा कि<br />मैंने ही कहा था-अच्छे समय में आपके <br />मैं बुरे समय की तरह उड़ जाऊंगा फुर्र<br /><br />पत्र की लाखों जेरोक्स हाथों में होंगी हाकरों के<br />आफिस-आफिस टंगा होगा पत्र<br />तिराहे-चौराहे, बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन<br />यमुना के घाटों पर,सार्वजनिक शौचालयों में<br />तुम प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर बताओगी अपनी आप बीती<br />सबसे तेज चैनल सबसे पहले फ्लैश आउट करेगा इसे<br />और इंडिया टीवी ढूंढ लाएगा इसमें <br />पांच हजार साल पहले का कोई रहस्य <br /><br />रविवार की फर्स्ट लीड होगी यह<br />प्रधानमंत्री के पाकिस्तान जाने की खबर से पहले की<br />तुम्हें यकीन हो जाएगा कि कहीं न कहीं तो<br />पढ़ ही लूंगा मैं चोरी-छिपे<br />चोरी-छिपे नजर रखोगी मुझ पर पर<br />कहीं नहीं मिलूंगा मैं तुम्हें सुनने के लिए<br />तुम्हें क्या पता-मेरे कारण ही तो था तुम्हारा बुरा समय।।<br /><br />तुम फिर भी गूगल करोगी<br />तुम कितना भी गूगल कर लेना<br />यकीन रखना मैं इस बात पर कोई कविता नहीं बनाऊंगा<br />और इसे अपने ब्लाग पर पोस्ट नहीं करूंगा कभी<br />तुम फिर भी गूगल करोगी<br />पर तुम कितना भी गूगल कर लेनाPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-36546349728586648912010-03-25T22:36:00.000-07:002010-03-25T22:40:41.656-07:00लिव इन रिलेशन में नहीं थे राधा-कृष्णमथुरा। राधा और कृष्ण का अलौकिक प्रेम पहली बार बहस के केंद्र में आया है। लिव इन रिलेशन अदालती बहस के पहले से अस्तित्व में है। समय को कानून की दृष्टि से परिभाषित करने से समाज की अपनी धारा और बदलता वक्त बंधता भी नहीं है। सवाल यह नहीं है कि लिव इन रिलेशनशिप बदलते समय की जरुरत है या नहीं, सवाल यह है कि किस शिलालेख, साहित्य या शास्त्र में कहा गया है कि राधा-कृष्ण लिव इन रिलेशन में थे। कान्हा की नगरी में तो कहीं-कहीं कृष्ण खुद ही राधा रूप में नजर आते हैं तो कभी राधा और कृष्ण एक दिखते हैं।<br />बरसाना के लाडलीजी मंदिर में भगवान कृष्ण की कृष्ण के रूप में नहीं, सखी रूप में पूजा होती है। पूजा ही नहीं, उनका श्रृंगार भी सखी रूप में होता है। यहां दो अलग-अलग मूर्तियां जरूर हैं, लेकिन दोनों को सजाने-संवारने और पूजने में समानता रखी जाती है। भाव यही है कि दोनों एक ही हैं। किताबें कहती हैं कि कृष्ण ने किशोर वय पार करते-करते वृंदावन छोड़ दिया, जो उनकी रास लीलाओं के लिए ख्यात है। वह मथुरा आए और बारह साल की उम्र में कंस का संहार किया। कंस के वध की सूचना मिलने पर जरासंध मथुरा के लिए रवाना हो गया। जरासंध के आने की सूचना मिलते ही भगवान कृष्ण अपनी मुरली और मुकट यमुना किनारे छोड़कर गुजरात के लिए चले गये। उन्होंने गोपियों को समझाने के लिए उद्धव जी को भेजा। कृष्ण सबसे पहले डांगौरजी गये, जहां उनके रणछोर स्वरूप के दर्शन होते हैं।<br />कृष्ण को अकेले पूजने वाले भी हैं, राधा को मानने वाले भी हैं और दोनों की युगल छवि को पूजने वाले भी वैष्णव हैं। दोनों को लक्ष्मी-नारायण का रूप भी माना जाता है। कृष्ण को पूज्य मानने वाले वैष्णव उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। शुरूआती पूजा की परंपरा को देखें तो दो शताब्दी ईसा पूर्व में पतंजलि का समय माना जाता है। तब वासुदेव कृष्ण के रूप में उनकी पूजा शुरू हुई, लेकिन उससे पहले उन्हें बाल कृष्ण के रूप में पूजा जाने लगा था। ग्रीक दूत मैगस्थनीज और कौटिल्य के अनुसार उन्हें सुप्रीम पावर के रूप में पूजा गया। भक्ति परम्परा में उनकी रास लीलाओं को जहां डिवाइन प्ले कहा गया है। सातवीं व नौैंवी शताब्दी से पहले दक्षिण भारत में उनकी भक्ति का प्रसार-प्रचार हुआ। बारह वीं शताब्दी में जब जयदेव का गीत-गोविंद आया तब उनकी रास लीला से लोग प्रभावित हुए और तब भी उनके अलौकिक रूप को ही पूजा गया। उत्तरी भारत में ग्यारह वीं शताब्दी में निबांकाचार्य, पंद्रहवी शताब्दी में वल्लभाचार्य और सोलह वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु ने उनके अलौकिक रूप को ही पहचान दी। और तो और वर्ष 1966 से जो भक्ति वेदांत आंदोलन पश्चिम के देशों में चल रहा है, वहां भी राधा-कृष्ण के रिश्तों को लौकिक रूप में परिभाषित करने का प्रयोग नहीं किया गया। इन देशों में लिव इन रिलेशनशिप सदियों से है।<br />इसी तरह परफार्मिग आर्ट्स में जो 150 ईसा पूर्व से प्रचलित हैं, उनमें भी ऐसे आख्यान या कथाएं नहीं हैं। दसवीं सदी से राधा-कृष्ण परफार्मिग आर्ट के सर्वाधिक लोकप्रिय चरित्र रहे हैं, लेकिन न तो उनकी भाव भंगिमा और न ही लोकोक्तियों में उनके शारीरिक मिलन की कोई कहानी सामने आती है। जहां तक पेटिंग्स का सवाल है तो कला के चितेरों ने अपनी कल्पना से उनके युवा रूप को ज्यादा दर्शाया है, जो काल्पनिक अधिक है। इन चित्रों में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं को दर्शाने का प्रयास किया गया। चित्रों के माध्यम से राधा-कृष्ण को एक भी दर्शाया गया। अलावा इसके न तो ऐसी मान्यता वैष्णव और हिंदू समाज में रही है और न ही कोई साहित्य, शिलालेख, संस्कृति उनके लौकिक रूप को दर्शाती है।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-64585020579119112242010-02-28T11:53:00.000-08:002010-02-28T11:57:54.315-08:00उसके चेहरे पर मेरी उंगलियांएक शाम जब उसके चेहरे पर<br />होती हैं मेरी उंगलियां<br />समंदर से उगने वाली रात<br />चाहती है किसी तरह मुझसे छू जाए <br />और शाम बनी रहे घर्षण होने तक<br /><br />एक शाम जब उसके सीने पर<br />सिर रखकर सुनना चाहता हूं मैं <br />बदलते समय के मासूम सवालों का संगीत<br />रात मेरी जेब में रखी डायरी में<br />दर्ज होने की प्रार्थना करती है<br /><br />किसी रात जब मैं <br />उसके वक्ष पर तन कर <br />लहराने का यत्न करता हूं<br />पांच साल पुरानी विधवा सी <br />वह रात सो नहीं पाती<br /><br />मुझे यकीन है<br />उससे दूर रहकर मैं उसे <br />उससे ज्यादा समझ सकता हूं<br />पर वह न छू लेने वाले अंगों में भी<br />ऐसे दौड़ती है, जैसे छू लेगी तो<br />कभी नहीं रुकेगी दौड़ने में <br /><br />जिस शाम उसके चेहरे पर होती है मेरी उंगलियांPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-27406668222037255472010-02-26T10:47:00.000-08:002010-02-26T11:07:57.016-08:00होली में जलना होता हैयह चिड़िया गाते-गाते <br />चुप हो जाती है और <br />मौन में अपनी दुनिया बसाती है<br /><br />क्या सच सुनाने के लिए भी दुनिया को सुनना पड़ता है<br /><br />यह चिड़िया उड़ते-उड़ते<br />खड़ी हो जाती है और <br />मुझे गोल-गोल घुमाती है<br /><br />क्या दुनिया नापने के लिए अपने अंदर चलना होता है<br /><br />यह चिड़िया चुगते-चुगते<br />मन के सारे दुख चुग जाती है और <br />पेड़ से अक्सर यह बुदबुदाती है<br /><br />क्या शैतान परिंदों को भी महसूस अकेलापन होता है<br /><br />हर बादल बरसने के लिए पैदा नहीं होता<br />हर बारिश फगुआ सा नहीं भिगोती<br /><br />होली खेलने के लिए क्या जरूरी होली में जलना होता है<br /><br />घोंसला लेकर उड़ने वाली <br />यह चिड़िया मुझसे पूछती है<br /><br />क्या प्रेम करने के लिए प्रेम में बार-बार जलना होता हैPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-83989370416283411892009-11-08T20:33:00.000-08:002009-11-08T20:35:20.079-08:00महगाई बढ़ाने वालों को पहचानोक्या केंद्र सरकार जानबूझकर महंगाई बढ़ाने का काम कर रही है। आगरा में बीते दो दिनों से जो कुछ हो रहा है, वह स्वाभाविक ही है। केंद्रीय मंत्रियों के आने वाले बयानों के बाद जिंस से लेकर सोना-चांदी तक की कीमतें जिस तरह बढ़ जाती हैं, उसे अब आम आदमी भी समझने लगा है। एमसीएक्स और केंद्रीय मंत्रियों का सिंडिकेट क्या वास्तव में बन चुका है। <br />चार दिन पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बयान दिया कि मंहगाई खरीफ सीजन तक रह सकती है। फिर क्या था, गेहूं का आटा 14 रुपए से बढ़कर 18 रुपए हो गया। चीनी 35 रुपए से 40 रुपए पर पहुंच गयी। दालों के भाव दो से चार रुपए तक बढ़े हैं। चावल पांच रुपए तक महंगा हुआ है। वायदा बाजार में चार दिन पहले तक दिसंबर के अरहर के सौदे 95 रुपए के हो रहे थे, पर पवार के बयान के एक घंटे के अंदर यह 120 रुपए तक उछल गए। पवार के बयान ने फल बाजार में भी आग लगा दी। सेब 40 से 100रुपए हो गया तो सफेद खरबूजा 40 से 70, खजूर 70 से 100 और केला 15 से 22 रुपए किलो हो गया। मसाले भी महंगाई के बुखार से नहीं बच सके। चाय की पत्ती 200 रुपये से ऊपर है। यह मथुरा जैसे छोटे शहर का खुदरा सूचकांक है तो बड़े शहरों की स्थिति समझी जा सकती है। <br />महंगाई से आम आदमी कराह रहा है और कह रहा है कि तीन राज्यों में जीत के बाद केंद्र सरकार के मंत्री बेलगाम हो चुके हैं। बयान देकर जानबूझकर महंगाई बढ़ाई जा रही है। पांच दिन पहले केंद्र सरकार ने कहा कि चांदी की बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा था। इस बयान के बाद चांदी तेरह सौ रुपए उछल कर 27 हजार के पार हो गयी। अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने करीब 13 हजार रुपए प्रति दस ग्राम के हिसाब से रेट तय किए हैं, पर भारत ने 6.7 अरब डालर की लागत से सोना खऱीदा है, जो 16 हजार रुपए प्रति दस ग्राम की दर का बैठता है। खऱीद की खबर जैसे ही मीडिया में आयी सोना 17 हजारी हो गया। भारत के कदम पर आईएमएफ के चेयरमैन ने भी हैरानी जतायी है।<br />सवाल यह उठता है कि सरकार का काम यह बयान देना है कि महंगाई को काबू में रखा जाएगा और जमाखोरों पर लगाम लगायी जाएगी, कि बार-बार महंगाई को उकसाना है। खुद कांग्रेस के अंदर भी इस बयानबाजी के खिलाफ आवाज उठ चुकी है, पर इन वजनदार मंत्रियों का असर इतना है कि खुद पीएम और सोनिया गांधी भी इस खेल को नहीं समझ पा रहे। एमसीएक्स के सिंडिकेट को नई दिल्ली से कौन संचालित करता है, यह किसी से छिपा नहीं है और सत्ता के गलियारों में चरचा में है। सारा खेल इसी के सहारे चल रहा है और आम आदमी की जेब ढीली की जा रही है। कांग्रेस को मुगालता हो गया है कि जनता पर अब मंहगाई का असर नहीं होता। <br />लोगों का कहना है कि न तो देश में युद्ध के हालात हैं और न अकाल पड़ा है, लेकिन अगर 24-24 घंटे में कीमतें बढ़ रही हैं, तो कहीं तो गड़बड़ है, जिसे सत्ता का वरद हस्त मिला हुआ है। आगरा में जनता का सड़क पर उतरना इस बात का संकेत है कि अब वह यह सहने के मूड में नहीं है। यह चिंगारी है जो पूरे देश में फैल सकती है। विरोधी दलों की उदासनीता भी लोगों को साल रही है। एक स्थिर सरकार के बाद भी वह ठगा महसूस कर रहे हैं। मीडिया जड़वत खबर प्रकाशित कर रहा है। ऐसी खबरें आ रही हैं, जो केवल घटनात्मक हैं। जनता को जागरुक करने की खबरों का अभाव साफ नजर आ रहा है।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-52769017285003142962009-11-08T10:54:00.001-08:002009-11-08T10:54:40.791-08:00सारी दोस्तो, मैं बहुत दिनों से गायब था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। देश में जो कुछ हो रहा है, उससे बहुत दिनों तक अलग नहीं रहा जा सकता। पूरा देश एक भयंकर समस्या से कराह रहा है। और सरकार की पैदा की गयी समस्या है यह। ताज्जुब यह है कि विरोधी दल चादर तान कर सो रहे हैं और केंद्र सरकार के नुमाइंदे स्पष्टवादिता के नाम पर जनता को लूटने में लगे हैं। मैं कल खुलासा करूंगा इस काकस का। सुबह जरूर पढ़ें मेरी पीड़ा को और आवाज लगाएं मेरी आवाज के साथ...Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-9964610460399364462009-09-20T00:23:00.001-07:002009-09-20T00:29:47.373-07:00मेरे दोस्त को जनम दिन मुबारकअभी जो तीन घंटे पहले आज का सबेरा हुआ है, वह कोई सामान्य सूर्योदय नहीं है। उसमें बड़ी चेतना है। बड़ी आशाएं हैं और ढेर सारा देने की लालसाएं भी हैं। क्योकि इस सूरज में आपके पुरखों का उजाला शामिल है। यह उजाला आपके जीवन में विस्तार पाना चाहता है। यह सूरज चाहता है कि पिछले साल की गलतियां न दोहराए और अंधेरा हावी न हो, कि परेशान न रहे फिर से आज के दिन अपना जन्म दिन मनाने वाला। इसलिए मैं कहता हूं, पूरे दिन, यानि कि आज के दिन इसका एहसास रहे कि यह प्रकृति, यह कायनात और हवाएं आपके साथ हैं, उनकी वजह से खुश रह सकते हैं। और पूरे साल खुश रहना है। यह बहुत मुश्किल नहीं है। ऐसा करना है आपको। <br />संबंध बड़े सूचक होते हैं-सिगनीफिकेटर। संबंधों में ही पता चलता है कि तुम कौन हो। क्योंकि दूसरे की आंख में तुम्हारी जो छवि बनती है, उसी को तुम देख पाते हो, खुद की कोई छवि देखने का सीधा उपाय नहीं है। तुम सीधे तो अपने आप को देख न सकोगे। देखने के लिए दर्पण चाहिए। और प्रेम बहुत कुछ सिखाता है। प्रेम से बड़ी कोई पाठशाला नहीं है। क्योंकि प्यार से ज्यादा तुम किसी मनुष्य के निकट और किसी ढंग से आते नहीं हो। जितने तुम निकट आते हो,उतने ही अंदर की आत्मा प्रगट होने लगती है। तुम भी झलकते हो, दूसरा भी झलकता है। अब दूसरा कैसे झलके, यह उसका सिरदर्द है। और इतना समझो कि प्यार की बडी़ अनूठी कीमिया है-तुम्हारे पास वही होता है, जो तुम दे देते हो। जो तुम बचा लेते हो, वह तुम्हारे पास कभी नहीं होता। दिखता है तुम्हारे पास है, लेकिन तुम उसके मालिक नहीं होते। मालिक तुम उसी के होते हो, जो तुम दे देते हो। जो बांट दिया है, उसी के मालिक हो। इसलिए इस नए वर्ष में अपना दिल छोटा न करना, कि कुछ बचा ही नहीं है। हंड्रेड परसेंट तो अभी भी बचा हुआ है, वही हंड्रेड परसेंट जो तुमने लुटा दिया था। <br />प्रेम का कोई लर्निंग प्रोसेस नहीं है। <br />इब्तिदा में ही मर गए सब यार<br />कौन इश्क की इंतिहा लाया।<br />इसलिए खाक होने की तैयारी हमेशा रखनी चाहिए। माना कि बहुत बार ऐसा लगेगा कि बड़ी देर हुई जा रही है और बुहत बार तड़फ होगी कि अब जल्दी हो औऱ बहुत बार खुद से ग्लानि होगी, शिकायत होगी बार-बार मेरे साथ ऐसा क्यों और इतनी पीड़ा क्यों, फिर भी-<br />क्या उसके बगैर जिंदगानी<br />माना वह हजार दिलशिकन है। <br />बहुत दिल को दुखाने वाला है, लेकिन प्यार बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। आप धन्य हैं कि प्रेम के रास्ते पर दुखी हैं, वे अभागे हैं जो प्रेम का नाटक कर सुखी और प्रसन्न हैं। <br />एक तर्जे-तगाफुल है सौ वह उनको मुबारक<br />एक अर्जे तमन्ना है सो हम करते रहेंगे।<br />एक प्रार्थना है, जो आपको करनी है, एक उपेक्षा है जो ईश्वर कर रहा है। प्रेम के सुख तो बड़े सच्चे हैं। दुख केवल भासमान है। इसलिए बुद्धिमानों ने प्रेम चुना, बुद्धिहीनों ने अहंकार चुन लिया, हांड़-मांस चुन लिया। बुद्धिमानों ने धर्म चुना, बुद्धिहीनों ने राजनीति चुन ली। इसलिए कहता हूं, समस्या तुम्हारे अंदर नहीं है। इस साल समस्या मत बनाना प्रेम को। <br />प्यार में हां है, स्वीकार है, प्यार में एक अहो भाव है, गीत है, नृत्य है,संगीत है। तो लाखों विकृतियां हो गयी हों प्रेम में, तो भी प्रेम को चुनना। बाकी रास्ता तो अपने आप बन जाएगा।<br />जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-56628458657787546912009-09-20T00:23:00.000-07:002009-09-20T00:28:01.136-07:00मेरे दोस्त को जनम दिन मुबारकमुझे नहीं पता आप क्या थे, आज आप क्या हो, कितना अंतर है आज के औऱ कल के आप में, पता नहीं, वैसे भी मैं कौन होता हूं यह तय करने वाला, लेकिन इतना तय है कि आप हो, जहां भी हो, जैसे भी हो, टूटे-फूटे या कि पूरे या अधूरे, यदि न भी हो तो मैं कौन होता हूं, यह तय करने वाला, लेकिन एक बात जो बार-बार सुख देती है, वह यह कि कोई संघर्ष के लिए तैयार है। कोई है जो अपने वजूद के लिए खड़ा होना चाहता है। उसकी लड़ाई किसी से नहीं है, अपने आप से है औऱ ल़ड़ाई भी इतनी महीन तरीके से लड़ी जा रही है कि आप लड़ते-लड़ते थका हुआ और निराश महसूस करते हैं, कई बार पस्त हो जाते हैं, पर खड़े होने का जज्बा नहीं मरता। नितांत अकेले और बिना किसी हथियार के, जो मिला उसी में अपना साथी ढूंढते हुए। यह कैसी बेबसी है और इसका कोई अंत है भी या नहीं। लड़ाई भी न तो खत्म हो रही है और न ही तेज हो रही है। वे लोग और हैं जो बिना लड़ाई के जी रहे हैं। आप नहीं जी सकते। वे लोग और हैं, जो बिना प्रेम के जी रहे हैं, आप नहीं जी सकते। यही तो फर्क है, जो परमात्मा ने आपको दिया है। और यह जो दूसरा जन्म हो रहा है, इस जन्मदिवस के साथ, अब यह समझ लेना अच्छी तरह से कि मुस्कारहट भी श्वास है। प्रेम भी श्वास है। और जैसे बिना भोजन के आदमी मर जाता है-बिना प्रेम के आदमी मर जाता है। बिना भोजन के शरीर मरता है, बिना प्रेम के आत्मा मर जाती है। तो बिना भोजन के तो तुम जी भी सकते हो-थोड़े दिन, बिना प्रेम के तो तुम क्षण भर नहीं जी सकते। क्योंकि प्रेम ही तुम्हारी आत्मा की श्वास है। जैसे शरीर को आक्सीजन चाहिए-प्रतिपल, ऐसे ही प्राणों को प्रेम चाहिए प्रति पल। लेकिन तुम जहां भी होते हो, डरे-डरे रहते हो, कोई इंकार न कर दे, कोई छोड़कर न चला जाए, जैसे चला गया है कोई, पता नहीं कब तक के लिए। लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। रब इतनी परीक्षा नहीं लेता, जितनी कि आपने समझ रखी है। कई बार रब सामने होता है, पता नहीं चलता, कई बार ठंडी हवाएं चलती हैं, पर पता नहीं चलता। कई बार अपने पहचान में नहीं आते। आखिर यह कैसा प्रेम है, जो आपकी प्रसन्नता के विपरीत है। यह कैसा प्रेम हुआ, जो आपको दुखी देखना चाहता है। यह कैसा प्रेम हुआ, जो आपको बांधता है, मुक्त नहीं करता। तुम्हें पता है एक होता है सुख औऱ एक होता है दुख। सब यही कहते हैं, अनुभवी और बड़े-बूढे़ भी, लेकिन यही दोनों नहीं होते। एक औऱ अवस्था है, जिसका नाम है आनंद। औऱ इसे कभी भी महसूस किया जा सकता है, सुख में भी, दुख में भी। और एक बात पते की, आनंद जितना स्ट्रगल में है, दुख में या उतना सुख में नहीं है। इसलिए हर दिन एक चेंज आपमें दिखना चाहिए, ऐसा होगा तो लगेगा कि कुछ लाइनें एक बड़ी कहानी का बीज बन रही हैं और ऐसी कहानी मैं लिखता ही रहूंगा, जो मेरी नजर में बकवास तो है, पर इतनी कोरी बकवास भी नहीं है कि उसका कोई अर्थ ही न हो। है न......और यदि मेरे से इत्तिफाक रखते हैं तो आज से कुछ बातों पर अमल जरूर करना-<br />जैसे कि आप अकेले नहीं हैं और किसी को अकेले रहने नहीं देंगे।<br />आप किसी के मालिक नहीं हैं और आप पर किसी की मिल्कियत भी नहीं है।<br />आप अकेले ही प्यार में नहीं हैं, और भी लोग हैं ऐसे, क्योंकि इस जगत में प्रेम है। <br />आप ही टूटे हुए नहीं हैं, औऱ भी हैं जो पतझड़ हैं, पर वे जमीन के उस हिस्से में समाना चाहते हैं, जहां से फिर बीज बनकर उपज सकें। इसलिए जब भी ऐसा लगे कि हाथ में कुछ नहीं रहा, तो परिस्थिति पर छोड़ देना सब कुछ...और रब इम्तिहान लेने वाला सख्त मास्टर नहीं है। <br />जितना आपको इतंजार है, किसी दूसरे को भी इंतजार है अपने अच्छे समय का और सच्चे दोस्त का........। <br />शुभ रात्रि, इस आशा के साथ कि इस रात की सुबह होगी। <br />और हां..कस्टमर कभी रिश्तों की दहलीज पर आकर खड़े नहीं होते, वे नए हों या पुराने। कस्टमर के जेब में पैसे होते हैं, फीलिंग्स नहीं। और फीलिंग्स का अभाव भिखमंगापन होता है।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-50407581542200798132009-08-13T23:00:00.001-07:002009-08-13T23:00:59.364-07:00We're happy to announce that IndiRank has been updated. 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हैं। मेट्रो सिटीज में इसका हौवा ही खड़ा नहीं हो गया है, बल्कि लोग इससे तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। इसका बचाव बताया जा रहा है आइसोलेशन। लेकिन हम यहां ज्योतिष और भारतीय औषधि परंपरा का अध्ययन करें और निर्वाह करें तो इससे बचाव का कारगर तरीका मिल सकता है। ज्योतिष शास्त्र कहता है कि जब भी चंद्र की कर्क राशि में सूर्य ग्रहण पड़ता है तो संक्रामक और नयी बीमारियां फैलती हैं। जुलाई माह में सूर्य ग्रहण के ठीक बाद ही स्वाइन फ्लू ने भारत में दस्तक दी थी। <br />एक और कारण जो हमें अपने अनुभव से समझ आता है, वह है सूखा। पता नहीं कोई वैज्ञानिक रिसर्च इस मामले में हुई है या नहीं, पर इतना तय है कि जब-जब मानसून की बारिश नहीं होती, इस तरह के रोग फैलते हैं। याद कीजिए वर्ष 2002,2003 का सूखा, जब इंग्लैंड से यहां आकर गाय का बुखार हौवा खड़ा कर रहा था। इसके बाद 2004 में बारिश खूब हुई और यह फ्लू चला गया। वर्ष 2005 में बारिश ने रुलाया तो चिकनगुनिया ने देश में सैकड़ों मौतें दीं। शरीर को तोड़ देने वाला यह बुखार और झटपट मौत के आगोश में सुला देने वाला यह फ्लू तीन साल रहा। 2005,2006 और 2007 में देश भर में लोग इससे मरते रहे, लेकिन 2008 में मानसून मेहरबान हो गया और इस फ्लू से निजात मिल गयी। इस साल 2009 में सूखा पड़ा तो स्वाइन फ्लू का वायरस फैल गया है। तो कोई न कोई संबंध सूखा और इस प्रकार के गंभीर वायरस के बीच है। बारिश होते ही ऐसे वायरस मरने लगते हैं। <br />अब श्री कृष्ण जन्माष्टमी से बारिश शुरू हुई है तो उम्मीद है स्वाइन फ्लू अपने जबड़े चौड़े नहीं कर पाएगा। <br />इसका दूसरा पहलू है दूषित वातावरण। हम लोग हवन-यज्ञ की परंपरा से दूर जा रहे हैं। अगर इन दिनों घर-घर छोटे हवन किए जाएं और उसमें गोबर के उपले, औपधीय वृक्षों की लकड़ी, छाल औऱ समिधा-सामग्री का प्रयोग किया जाए तो यह वायरस इक दिन में मर सकता है। दुर्भाग्य है कि सरकारें अपनी समृद्ध चिकित्सा व कर्मकांड प्रणाली पर विचार तक करना कट्टरवाद समझती हैं। बाबा रामदेव ने गिलोहे के पत्ते, तुलसी के पत्तों का प्रयोग बताया है, यह बहुत कारगर तरीका है। इन दिनों लोगों को नींबू का प्रयोग बढ़ा देना चाहिए। याद करिए चिकनगुनिया में भी तुलसी के पत्ते और नींबू डालकर गुनगुना पानी पीने से ही लाखों लोगों ने स्वास्थ्य लाभ किया था। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की आप सब साथी लोगों को शत-शत बधाई। <br />पवन निशान्त<br />http://familypandit.blogspot.comPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-86608678910276262502009-04-08T11:09:00.000-07:002009-04-08T11:39:27.056-07:00जूते से पहचान हो मेरीमुझे लगता है, पी.चिदंबरम की प्रैस वार्ता में जो कुछ हुआ, उसमें न तो गृह मंत्री को उतनी सहानुभूति मिल सकी है और न ही बेचारा जरनैल सिंह उतना हीरो बन सका, जितना कि उसको बन जाना चाहिए था। अजी तो फिर चूक कहां हो गयी। मेरे ख्याल से सारा श्रेय वह नामुराद जूता ले गया, जो फैंके जाने के बाद दुनिया की नजरों में आया, वरना उससे पहले तो उसकी हैसियत एक पत्रकार के पैर की जूती से ज्यादा नहीं थी। <br />दरअसल यह जूता इतना सैक्सी था कि जिसने भी इसे देखा, रीबाक का मान लिया। वैसे हो सकता है कि यह कोई लोकल जूता हो और हो कोई पांच सौ रुपए के आसपास का, लेकिन उसका लुक इतना हसीन था कि सबको भा गया। उससे जूते के प्रति ही लोगों का प्यार नहीं उमड़ा, बल्कि पत्रकार की हैसियत भी जूते की वजह से बढ़ी। जूता फिंकने के बाद पत्रकार की हैसियत का पता चला और पता चला कि यह वही पत्रकार है, जो नंबर वन अखबार में नौकरी करता है। कहा जा सकता है कि अखबार का नाम रोशन करने में जूते के सैक्सी लुक का बहुत बड़ा योगदान रहा। <br />वैसे एक पते की बात यह भी है, जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। वह यह कि जरनैल सिंह ने गृह मंत्री पर जूता फैंक कर नहीं मारा, वरन उछाला गया था। उसके द्वारा जूता फैंकने की जो फुटेज टीवी चैनलों में आ रही हैं, उससे साफ पता चलता है कि जूता फैंकने से पहले ही पत्रकार ने मन बना लिया था कि उसे फैंकना नहीं है, बल्कि उछालना है। उछाला भी इस तरह गया कि उसका कोण नब्बे डिग्री का न होकर एक सौ बीस डिग्री के अधिक कोण में ज्यादा था। <br />जरनैल सिंह की यह प्रीप्लान्ड प्लानिंग हो सकती है और हो सकता है कि उसने यह जूता बनाने वाली कंपनी से पहले कोई डील की हो कि वह उक्त जूता कंपनी का बहुत बढ़िया ब्रांड अंबेसडर हो सकता है। आपको याद होगा कि इराक में जब जूता फैंका गया तो उसके बाद पूरे देश में जूता फैंकने का रिवाज सा चल गया और देखते ही देखते वह जूता बनाने वाली कंपनी जो दिवालिया हो गयी थी, उसे लाखों जूते बनाने के आडर्र मिल गए थे।<br />ऐसा अपने यहां क्यों नहीं हो सकता। आपको शायद मालूम होगा कि आज बुधवार को जब जरनैल सिंह ने गृह मंत्री का शुक्रिया अदा किया है, उसका कंपनी के फ्रैंचाइजी, वितरक, डीलर व रिटेलर पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि कंपनी से आर्डर निकलने शुरू हो चुके थे। मेरे यहां जैसे छोटे शङरों के जूता दुकानदार ऐसे जूतों को ढूंढ-ढूंढ कर परेशान थे, लेकिन एक पीस जूता नहीं मिल पा रहा था। <br />जरनैल ने जानबूझकर जूता उछाला, यह तय है। उसे पता था कि जूता फैंक कर मारने में तीन साल की सजा हो सकती है, जैसे कि इराक वाले भाई को हो चुकी है, जबकि जूता उछालने पर कोई आफैंस नहीं बनेगा। जूता उछालने पर कांग्रेस भी खुश हुई और उसे मुकदमा दर्ज न कराने का बहाना मिल गया, जबकि सिख संगठनों को एक मुद्दा मिल गया। तो भइया मेरे, यह लोकतंत्र है, लोकतंत्र का सबसे बड़ा मेला चालू आहे। ऐसे में जो बाजीगरी न कर पाए, वह बेवकूफ है, जरनैल सिंह नहीं। हम पत्रकार जो हमेशा दूसरों को हाईलाइट करते रहते हैं, अगर कभी खुद हाईलाइट होने का ख्याल कर लें, तो इसमें बुरा क्या है। <br />-पवन निशान्तPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-70633844521741263382009-03-09T00:00:00.000-07:002009-03-09T00:03:32.106-07:00होली में...मिलाएंगे गला उनसे<br />सरे बाजार होली में<br />ये है नहीं मुमकिन<br />कि वह कर सकें <br />हमें इंकार होली मेंPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-60827842265083059932009-03-08T23:45:00.000-07:002009-03-08T23:56:00.300-07:00होली में तुम्हारा स्मरणपिचकारियों के मौसम में<br />और स्मृतियों के धुंधलेपन में<br />मन में कुछ घुलता सा<br />सफेदी के डेले की तरह<br />विस्फोट करता<br />मन में कोई ढूंढता सा<br />नामजद किंतु गुमशुदा दोस्तों को<br /><br />लाल खून से लिखे शिलालेखों पर<br />कुछ उकेरता सा<br />दिन की तरह<br />बेचैनी लेकर <br />और फिर कुछ डूबता सा<br />झुंझलाकर उदास<br />दिन ही की तरह<br /><br />सागर की गहराइयों में<br />या अंतरिक्ष की जमीन पर<br />गुम हो जाने वालो<br />होली में तुम्हारा स्मरण<br />पानी में घुलकर उतर रहा है टेसुओं सेPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-77164689510998434682009-01-25T20:06:00.000-08:002009-01-25T21:02:28.928-08:00हमारे समय की तस्वीरऐसे समय की <br />तस्वीर चाहते हैं हम लोग, जिसमें<br />सभी कुछ हो सभ्य, शालीन और सुसंस्कृत<br /><br />तस्वीर में समय हंस रहा<br />अठखेलियां कर रहा हो<br />बच्चों के साथ<br />बूढ़ों के साथ बैठा हो चारपाई पर<br />समय चाहे हो घर से बाहर <br />पर मुकम्मल तौर पर घऱ लौटता हो<br />जैसे लौटता है गणतंत्र दिवस<br />और न भी लौटता हो<br />तो भी विश्वास हो हमें कि <br />लौट आएगा एक दिन<br /><br />समय जाता हो दिल्ली-कोलकाता<br />यात्रा करता हो मेट्रो या ट्राम्वे से, किंतु<br />जब भी घर लौटा हो तो<br />इस तरह नहीं, जैसे <br />दफ्तर से लौटता है <br />किसी का पति, भाई या बेटा<br />थका-थका सा, बोझिल और टूटा हुआ<br /><br />हम लोग आए हैं<br />बंगलुरू से, अहमदाबाद से<br />भुज से, भोपाल से भी आए हैं कुछ लोग<br />कुछ लोग आ रहे हैं नंदी ग्राम से <br />और जो नहीं आ सके हैं लातूर से, मुंबई से <br />या ताज-ओबेराय से, उनकी लाए हैं हम पसंद<br />हम लोग ऐसे समय की<br />तस्वीर चाहते हैं<br />जो बूढ़ों की तरह खूंसट न हो<br />बहरा न हो अतीत सा<br />फुसफुसाता न हो<br />फटने वाले बारूद की तरह<br />तस्वीर में भी, डरावना <br />न हो मृत्यु सा<br />वह इस सदी सा न हो<br />और ऐसी ही कई सदियों सा भी न हो<br />उसमें मंदी न हो महंगाई न हो<br />बाटला हाउस की जग हंसाई न हो<br /><br />वह तो ऐसा हो<br />जिसे हम ले जा सकें<br />अगली सदी में<br />जैसे लोग ले जाते हैं<br />कोई भेंट, कोई उपहार किसी की खुशी में<br />प्रेमी देते हैं जैसे सरप्राइज<br />और जैसे हम ले गए थे<br />हाईस्कूल में पास होने की खबर<br />अपने घर<br /><br />कृपा करके पहले हमें<br />हमारी तस्वीर बना दीजिएPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-72756556838072696412009-01-09T11:40:00.000-08:002009-01-09T11:53:32.377-08:00चल दिए हैं पूस के तानाशाहअभी अभी जड़ था कबूतर<br />वर्फ की पहाड़ सी परत में<br />अभी अभी हुआ है चेतन<br />सूर्य के पहले प्रकाश में<br /><br />रोंया रोंया शुष्क था मौसम<br />मौत की पगडंडी पर<br />अभी अभी पिघला है<br />जीवन की ताल तलैया में<br /><br />घर घर सोया पड़ा था आदमी<br />कुछ सुध कुछ बेसुध<br />अभी अभी जागा है हौसला<br />ताल ठोंक कर गांव गांव<br /><br />शाख शाख पसरी थी रात<br />चंगेजी ठंड के शासन में <br />अभी अभी हिनहिनाने लगे हैं घोड़े<br />चल जो दिए हैं पूस के तानाशाहPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-59619368503349438962009-01-06T11:28:00.000-08:002009-01-06T12:06:08.399-08:00डरी हुई है धूपकुछ अवसाद सा घुल रहा है मौसम में<br />धूप के साथ-साथ<br />धूप डरी हुई है<br />कुछ दिनों से<br /><br />पहले धूप होती थी खिलंदड़ी<br />चाहे जहां आकर बैठ जाती थी<br />पक्की छत पर<br />छत की मुंडेर पर<br />कच्चे आंगन में, बरामदे में<br />पूरा घर और घर के बाहर <br />अपने आप उग आयी अयाचित घास पर<br /><br />पहले धूप मांगती थी-<br />खुली खिड़की<br />खुला रोशनदान<br />हो सके तो छोटा सा कोई संद या मोखला<br /><br />जब सबको था विश्वास<br />धूप नहीं छोड़ेगी साथ<br />मरते दम तक<br />पहले कोई नहीं करता था बात<br />धूप के बारे में<br />धूप भी नहीं चाहती थी करे कोई बात<br />उसके बारे में<br /><br />जब धूप थी, हम थे <br />हम थे और हमारा संसार था<br />पर नहीं था कोई तो धूप और हम<br />पहले धूप बहुत गरम थी न ठंडी<br />बस गुनगुना करती थी तन को<br />तन पर पड़ी कमीज को<br />कमीज की जेब में रखे ठंडे प्रेम पत्र को<br />हम कभी खर्च नहीं करते थे बीस रुपया<br />कलेंडर को कि कब आएगा माघ-अगहन<br /><br />डरी हुई धूप देखकर<br />फुसफुसा रहे हैं हम<br />हम जानते हैं लगातार समा रहा है<br />हमारे भीतर डरी हुई धूप का डर<br />डर का अवसाद<br />हम समझ रहे हैं कि<br />डरी हुई है धूप<br />और डर बन रहा अवसाद<br /><br />डर झांक रहा बार बार<br />मन से बाहर<br />जहां धूप इस तरह दिखती <br />कि केवल तन को गुनगुना करेगी<br />पर मन को भी गुनगुना कर देती थी<br /><br />हाइवे पर खड़ी है धूप<br />और बेरियर पर टोल टैक्स मांगा जा रहा है उससे<br />जाने क्यों ठंडा हो गया है धूप का भेजाPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-9413065057712797172009-01-01T10:31:00.000-08:002009-01-01T10:42:16.408-08:00विचलित हुआ नया खूननव वर्ष की आत्मीय शुभकामनाओं के साथ--<br />अच्छा हुआ<br />आ तो गया पूस<br />धुन भी गयी जड़ कपास<br /><br />अच्छा हुआ<br />फुटपाथियों को भी याद आयी रुई<br />गर्म हो गयी कल्लू की दुकान<br /><br />अच्छा हुआ<br />जम गयीं लाल रक्त कणिकाएं<br />किसी के हिंसक आह्वान पर<br /><br />अच्छा हुआ<br />सब एकमत तो हुए<br />एक रजाई की वजह से<br /><br />अच्छा हुआ<br />विचलित हुआ नया खून<br />ऋतु के गिरते तापमान में।।Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-48075670853852342022008-12-09T10:17:00.000-08:002008-12-09T10:37:23.395-08:00आतंकवादी से खेलेंगे बच्चेबच्चे पूछ रहे हैं आतंकवादी का घर<br />बच्चे जा रहे हैं आतंकवादी के घर<br />बच्चे मिलेंगे आतंकवादी से<br /><br />ऐसा कुछ नहीं करेंगे बच्चे<br />जिससे आतंकवादी डर जायें<br />या कि डर से भर जायें<br />बच्चे चाहते हैं कि आतंकवादी सिहर जायें<br /><br />बच्चे मिलने चले हैं खाली हाथ<br /><br />बच्चे पूछेंगे-<br />तुम में से हीमैन कौन है<br />तुम मे सुपर मैन कौन है<br />और कहाँ रहता है भयानक ड्रेकुला<br /><span class=""></span><br />बच्चे बदल देंगे कॉमिक्स का झूठ <br /><br />बच्चे देखना चाहेंगे<br />आतंकवादी के घर का पिछला दरवाजा<br />बच्चे खोलना चाहेंगे<br />आतंकवादी के तमंचे की नली<br />बच्चे होना चाहेंगे<br />आतंकवादी के साथ<br />थोड़ा आतंकवादी<br />आतंकवादी से खेलेंगे बच्चे<br />कोई खुराफात<br /><br />पीछे फैंक आए हैं कॉमिक्स<br />खिलोने तोड़ आए हैं बच्चे<br />बच्चे लौटेंगे फेंटम की सी कोई कहानी बनाकरPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-52610753416022333552008-11-27T11:10:00.000-08:002008-11-27T11:14:22.496-08:00अकेलेपन को बांटता हुआ मिलूँगामंद मंद बह रही इस हवा का <br />कोई अतीत तुम्हें याद है<br />जिसके स्पर्श से छत पर अकेले बैठे <br />एक आदमी ने गुनगुनाते हुए <br />मीलों लंबा पत्र लिखा था<br /><br />दुनिया की सबसे पवित्र नदी में स्नान करने के बाद<br />जिसने एक रंग मलना शुरू किया <br />और रंग धुलने के लिए एक बारिश का इंतजार करता रहा<br /><br />जिसके बारे में तुमने कहा था<br />त्वचा के आवरण में वह कितनी ही दीवार खड़ी कर ले<br />मैं उसके अंदर के आदमी को हाथ पकड़कर बाहर निकाल सकती हूं<br /><br />कभी सौ बार थपकी देकर सुलाया गया था उसे<br />और एक बार बिना थपकी लिए वह तुम्हारी <br />थकान में गुम हो गया था <br /><br />जब सभी छतें खाली हो गयी <br />उसके मरने के बाद<br />वह बादलों को भीगता हुआ मिला था<br />उसी छत पर अपने अकेलेपन को बांटता हुआPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-36409229576615147712008-11-16T11:10:00.000-08:002008-11-16T11:34:44.374-08:00मंदी के भूतधीरे-धीरे खत्म हो जाएगी गरीबी<br />पैसा कमाने के सपने तो होंगे पर जरूरत नहीं होगी<br />जरूरत पूरी करने की चुभन तो होगी पर एहसास मर जाएगा<br />न्यूज प्रिंटर की तरह धड़ाधड़ बाहर आएंगी जरूरतें<br />चिल्लाएंगी हंगामा करेंगी पर अधूरी जरूरतें<br />पूरी होने वाली जरूरतों का घोंट देंगी गला<br />सुबह का अखबार कौन पढ़ना चाहेगा<br />अल्सुबह काम पर जाना होगी सबसे बड़ी जरूरत<br />तब रात में निकलने शुरू होंगे अखबार या तब<br />जब कोई उन्हें पढ़ने की जरूरत जताएगा<br />दिन भर बिना कमाये लौटेगा आदमी<br />रात में काम पर जाएंगी औरतें, लगी रहेंगी काम में<br />यक्ष प्रश्न बार-बार परीक्षा लेगा उनकी<br />किसका बिस्तर गर्म करें कितनों का बिस्तर गर्म करें<br />कि गरम हो सके सुबह का चूल्हा<br />बिस्तर गरम कराने वाले छोड़ चुके होंगे शहर<br />शहर के अस्पताल भरे होंगे उनसे<br />हाहाकार मचा होगा अस्पतालों में-<br />ऊं जूं सः मा पालय, ऊं जूं सः मा पालय पालय। <br />बच्चे निकलेंगे पूरा परिवार संगठित होकर <br />कमाएगा और पाएगा फूटी कौड़ी<br />तब जागेगा प्यार आर्थिक अभाव में<br />प्यार भूख में होगा पर भूख न लगेगी<br />बाजारवाद की व्याख्या करके <br />विजयी भाव से भर जाएगा प्यार<br />इतिहासकारों का शरीर फट चुका होगा<br />अर्थशास्त्रियों के भेजे में हो जाएगा कैंसर या मधुमेह से <br />मारे जा चुके होंगे सब के सब<br />जनता का आदर्श हो जाएगा आर्थिक अभाव<br />पूंजी का कोई अर्थ न रह जाएगा<br />जो पूंजी वाला होगा, वही सबसे गरीब होगा<br />पैसे वाला पैसे वाले से दूर भागेगा<br />जो जितना अमीर होगा उतना अश्पृश्य हो जाएगा<br />जो जितना गरीब होगा उतना अपना होगा<br />पूंजी के साथ आने वाले मर्ज उड़न छू हो चुके होंगे<br /><br />मुझे भूतों की दुनिया दिखती है<br /><br />उस दुनिया में मारामारी नहीं है<br />आदमी भड़ुआ नहीं है औरत बाजारी नहीं है<br />बच्चों के आगे बड़ा होने की लाचारी नहीं है<br />बड़ी हो रही है भूतों की दुनिया<br />समय के सहवास में हुए स्खलन से हो रहा है उसका जनम<br />किसी पल कबीर की उलटबांसियों की तरह<br />सामने आकर खड़ी हो सकती है भूतों की दुनिया<br />उनकी आंखों में लाल डोरे फैलने लगे हैं<br />जाप चल रहा है चल रहा है और तेज हो रहा है<br />तीव्रतम हो रहे हैं उनके स्वर-<br />परित्राणाय साधुनाम......<br /><br />भूतों की हथियार मंद दुनिया से <br />हमले का अंदेशा लगता हैPawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1456102537090837255.post-56622790921554977742008-11-09T10:27:00.000-08:002008-11-09T10:45:31.072-08:00खो रहा हूं मैंकुछ पाया मैंने और खो भी दिया<br />जिया भोगा चखा-एक एहसास पाला<br />उसे नाम दिया-प्रेम<br />ऐसे ही कि जहां से आया हूं लौटना है<br />उठा हूं डूबना है, सिमेटा है उसे-बिखेरना है<br />उसे नाम दिया परमात्मा<br />तब तुमसे अवांछित शिकायतें कैसी<br />नियम-रीति मुंह फाड़े चिल्ला रहे हैं-<br />पाये को लौटाना है प्रतिपल प्रतिरूप प्रतिबिम्ब<br />पर जीवन का वास्ता है-लौटाना है।<br />चांद बुलाता है तारे बुलाते हैं सीमाएं बुलाती हैं<br />चोटिया बुलाती हैं गहराइयां भी बुला ही लेती हैं आदमी को<br />और तुमने बुलाया उसी अंदाज में मुझे<br />सबसे निकट अपने। फिर भुला दिया सोचना <br />मुझे या कि मेरे लिए तुम बुलाने लगे-दूर को<br />चांद को तारों को कंचनजंगा को प्रशांत को<br />तुम कहती हो-कोई निमंत्रण देता है।<br />जबकि सुंदरता दूर की वस्तु है<br />मैं जो स्वयं में हूं-तुम, तुम्हारे स्मरण में नहीं आता<br />तो जो है तुम्हारे भीतर पुकार वहां की<br />चली गयी है निविड अंधेरे में, इच्छाओं के अतल में <br />जबकि तुम्हारा तल मेरे भीतर है<br />और क्या मिट सकता हूं मैं जो कि अनंत है <br />शाश्वत है प्रेम-परमात्मा<br />सागर मिटा है लहर के बिना जबकि लहर उठी है<br />खेली है-वक्ष पर उसके<br />और फिर रूठ भी गयी<br />जबकि आंधियां तूफान उठे हैं हवाओं में और बिखर भी गए<br /><br />ग्रह नक्षत्रों की जो सत्ता मैंने जीत ली थी<br />आज तुम्हारी वजह से लौटाने जा रहा हूं.....Pawan Nishanthttp://www.blogger.com/profile/00539660022292238801noreply@blogger.com5