मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

क्यूं मुझे हैरां देखो

कौन कहता है कि मुझे हैरां देखो
मेरा खोया खोया सा चेहरा देखो
जाओ सो जाओ रात का वक्त है
नींदों में क्यूं खुद को परेशा देखो
सुबह सुन लेना अभी कह न सका
सूखी आखों में पानी ठहरा देखो
मेरी आदत में है यूं रूठते रहना
छोटी बातों में खुद बिछड़ा देखो।।

क्यूं मुझे पैरां देखो

कौन कहता है कि मुझे हैरां देखो
मेरा खोया खोया सा चेहरा देखो
जाओ सो जाओ रात का वक्त है
नींदों में क्यूं खुद को परेशा देखो
सुबह सुन लेना अभी कह न सका
सूखी आखों में पानी ठहरा देखो
मेरी आदत में है यूं रूठते रहना
छोटी बातों में खुद बिछड़ा देखो।।

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नव वर्ष की शुभकामनाएं

जिस तरह के हो
उसी तरह से देना चाहता हूं
मैं तुम्हें नए साल की शुभकामना
जितने तरीके से समझ सकते हो तुम
उतने तरीके से भी।।
मैं तुम्हारे इरादों में शामिल हूं
और घटनाओं में भी, जिस तरह
शामिल हो गया नए साल का यह पहला दिन
तुम जो चाहो मांग लो मुझसे
और न चाहो मुझे तो कोई बात नहीं
और न मांगों तो भी कोई बात नहीं
डूबते जहाज पर तुन्हारे साथ
लाइफ जैकेट हूं मैं और आसमान में उड़ते
सपने की पहली उड़ान मैं हूं।
तुम बोलोगे हैप्पी न्यू ईयर
और मैं कहूंगा..यह भी कहने की क्या जरूरत है
जब शामिल हो तुम मेरी जिंदगी में
मुझे खुश करने के लिए
और मैं तुम्हारे हर दिन हर पल की बाजीगरी में
फिर भी तुम चाहो तो मेरे सभी दोस्तो तुम
कह सकते हो मुझसे कुछ भी मुबारकवाद में
पर नए साल में तुम्हें महसूस करने का एकमात्र रिजोल्यूशन है मेरा...
मेरी तरफ से नए साल की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।।।।।।

रविवार, 12 दिसंबर 2010

और लुटा देनी है

मुझे तुम्हारे सबसे भीतर बैठे इंसान से मिलना है
उससे भी भीतर सपने बुन रही लड़की से
मांगना है खुला आसमान
गुलाबी होठों पर जो सबसे ज्यादा अच्छी लगेगी
ऐसी चमक जिंदगी की फैलानी है मुझे
तुम में ढूंढनी है मुझे अनगिनत बेशुमार खुशी
और लुटा देनी है
तुम्हारे ही अकेलेपन में

गुरुवार, 6 मई 2010

तुम फिर भी गूगल करोगी

तुम कितना भी गूगल कर लेना
तुम्हें मेरा प्रोफाइल नहीं मिलेगा
ई-मेल आईडी नहीं मिलेगा

जिस दिन तुम खुश होगे
दुखों की लंबी थकान के बाद
तुम्हें दुख का यह भी चिह्न नहीं मिलेगा

मुझे पत्र में लिखकर बताना चाहोगे
यह जानते हुए भी कि मेरा पता तुम्हारे पास नहीं है
तुम पत्र लिखना खत्म नहीं करोगे सारी रात
यह जानते हुए भी कि कभी नहीं पढ़ा सकोगे मुझे
बे-सिर पैर की बातें कहोगे उसमें,पहले की तरह

और वे बातें जिनसे दुखों ने हार मान ली और
सुखों के लिए छोड़ दिया चौड़ा रास्ता
यह जानते हुए भी पत्र लिखते-लिखते
बार-बार तुम्हें याद नहीं आएगा कि
मैंने ही कहा था-अच्छे समय में आपके
मैं बुरे समय की तरह उड़ जाऊंगा फुर्र

पत्र की लाखों जेरोक्स हाथों में होंगी हाकरों के
आफिस-आफिस टंगा होगा पत्र
तिराहे-चौराहे, बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन
यमुना के घाटों पर,सार्वजनिक शौचालयों में
तुम प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर बताओगी अपनी आप बीती
सबसे तेज चैनल सबसे पहले फ्लैश आउट करेगा इसे
और इंडिया टीवी ढूंढ लाएगा इसमें
पांच हजार साल पहले का कोई रहस्य

रविवार की फर्स्ट लीड होगी यह
प्रधानमंत्री के पाकिस्तान जाने की खबर से पहले की
तुम्हें यकीन हो जाएगा कि कहीं न कहीं तो
पढ़ ही लूंगा मैं चोरी-छिपे
चोरी-छिपे नजर रखोगी मुझ पर पर
कहीं नहीं मिलूंगा मैं तुम्हें सुनने के लिए
तुम्हें क्या पता-मेरे कारण ही तो था तुम्हारा बुरा समय।।

तुम फिर भी गूगल करोगी
तुम कितना भी गूगल कर लेना
यकीन रखना मैं इस बात पर कोई कविता नहीं बनाऊंगा
और इसे अपने ब्लाग पर पोस्ट नहीं करूंगा कभी
तुम फिर भी गूगल करोगी
पर तुम कितना भी गूगल कर लेना

गुरुवार, 25 मार्च 2010

लिव इन रिलेशन में नहीं थे राधा-कृष्ण

मथुरा। राधा और कृष्ण का अलौकिक प्रेम पहली बार बहस के केंद्र में आया है। लिव इन रिलेशन अदालती बहस के पहले से अस्तित्व में है। समय को कानून की दृष्टि से परिभाषित करने से समाज की अपनी धारा और बदलता वक्त बंधता भी नहीं है। सवाल यह नहीं है कि लिव इन रिलेशनशिप बदलते समय की जरुरत है या नहीं, सवाल यह है कि किस शिलालेख, साहित्य या शास्त्र में कहा गया है कि राधा-कृष्ण लिव इन रिलेशन में थे। कान्हा की नगरी में तो कहीं-कहीं कृष्ण खुद ही राधा रूप में नजर आते हैं तो कभी राधा और कृष्ण एक दिखते हैं।
बरसाना के लाडलीजी मंदिर में भगवान कृष्ण की कृष्ण के रूप में नहीं, सखी रूप में पूजा होती है। पूजा ही नहीं, उनका श्रृंगार भी सखी रूप में होता है। यहां दो अलग-अलग मूर्तियां जरूर हैं, लेकिन दोनों को सजाने-संवारने और पूजने में समानता रखी जाती है। भाव यही है कि दोनों एक ही हैं। किताबें कहती हैं कि कृष्ण ने किशोर वय पार करते-करते वृंदावन छोड़ दिया, जो उनकी रास लीलाओं के लिए ख्यात है। वह मथुरा आए और बारह साल की उम्र में कंस का संहार किया। कंस के वध की सूचना मिलने पर जरासंध मथुरा के लिए रवाना हो गया। जरासंध के आने की सूचना मिलते ही भगवान कृष्ण अपनी मुरली और मुकट यमुना किनारे छोड़कर गुजरात के लिए चले गये। उन्होंने गोपियों को समझाने के लिए उद्धव जी को भेजा। कृष्ण सबसे पहले डांगौरजी गये, जहां उनके रणछोर स्वरूप के दर्शन होते हैं।
कृष्ण को अकेले पूजने वाले भी हैं, राधा को मानने वाले भी हैं और दोनों की युगल छवि को पूजने वाले भी वैष्णव हैं। दोनों को लक्ष्मी-नारायण का रूप भी माना जाता है। कृष्ण को पूज्य मानने वाले वैष्णव उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। शुरूआती पूजा की परंपरा को देखें तो दो शताब्दी ईसा पूर्व में पतंजलि का समय माना जाता है। तब वासुदेव कृष्ण के रूप में उनकी पूजा शुरू हुई, लेकिन उससे पहले उन्हें बाल कृष्ण के रूप में पूजा जाने लगा था। ग्रीक दूत मैगस्थनीज और कौटिल्य के अनुसार उन्हें सुप्रीम पावर के रूप में पूजा गया। भक्ति परम्परा में उनकी रास लीलाओं को जहां डिवाइन प्ले कहा गया है। सातवीं व नौैंवी शताब्दी से पहले दक्षिण भारत में उनकी भक्ति का प्रसार-प्रचार हुआ। बारह वीं शताब्दी में जब जयदेव का गीत-गोविंद आया तब उनकी रास लीला से लोग प्रभावित हुए और तब भी उनके अलौकिक रूप को ही पूजा गया। उत्तरी भारत में ग्यारह वीं शताब्दी में निबांकाचार्य, पंद्रहवी शताब्दी में वल्लभाचार्य और सोलह वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु ने उनके अलौकिक रूप को ही पहचान दी। और तो और वर्ष 1966 से जो भक्ति वेदांत आंदोलन पश्चिम के देशों में चल रहा है, वहां भी राधा-कृष्ण के रिश्तों को लौकिक रूप में परिभाषित करने का प्रयोग नहीं किया गया। इन देशों में लिव इन रिलेशनशिप सदियों से है।
इसी तरह परफार्मिग आर्ट्स में जो 150 ईसा पूर्व से प्रचलित हैं, उनमें भी ऐसे आख्यान या कथाएं नहीं हैं। दसवीं सदी से राधा-कृष्ण परफार्मिग आर्ट के सर्वाधिक लोकप्रिय चरित्र रहे हैं, लेकिन न तो उनकी भाव भंगिमा और न ही लोकोक्तियों में उनके शारीरिक मिलन की कोई कहानी सामने आती है। जहां तक पेटिंग्स का सवाल है तो कला के चितेरों ने अपनी कल्पना से उनके युवा रूप को ज्यादा दर्शाया है, जो काल्पनिक अधिक है। इन चित्रों में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं को दर्शाने का प्रयास किया गया। चित्रों के माध्यम से राधा-कृष्ण को एक भी दर्शाया गया। अलावा इसके न तो ऐसी मान्यता वैष्णव और हिंदू समाज में रही है और न ही कोई साहित्य, शिलालेख, संस्कृति उनके लौकिक रूप को दर्शाती है।

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

उसके चेहरे पर मेरी उंगलियां

एक शाम जब उसके चेहरे पर
होती हैं मेरी उंगलियां
समंदर से उगने वाली रात
चाहती है किसी तरह मुझसे छू जाए
और शाम बनी रहे घर्षण होने तक

एक शाम जब उसके सीने पर
सिर रखकर सुनना चाहता हूं मैं
बदलते समय के मासूम सवालों का संगीत
रात मेरी जेब में रखी डायरी में
दर्ज होने की प्रार्थना करती है

किसी रात जब मैं
उसके वक्ष पर तन कर
लहराने का यत्न करता हूं
पांच साल पुरानी विधवा सी
वह रात सो नहीं पाती

मुझे यकीन है
उससे दूर रहकर मैं उसे
उससे ज्यादा समझ सकता हूं
पर वह न छू लेने वाले अंगों में भी
ऐसे दौड़ती है, जैसे छू लेगी तो
कभी नहीं रुकेगी दौड़ने में

जिस शाम उसके चेहरे पर होती है मेरी उंगलियां
Powered By Blogger

मेरे बारे में

mathura, uttar pradesh, India
पेशे से पत्रकार और केपी ज्योतिष में अध्ययन। मोबाइल नंबर है- 09412777909 09548612647 pawannishant@yahoo.com www.live2050.com www.familypandit.com http://yameradarrlautega.blogspot.com
free website hit counter
Provided by the web designers directory.
IndiBlogger - Where Indian Blogs Meet www.blogvani.com blogarama - the blog directory Submit चिट्ठाजगत Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

मेरी ब्लॉग सूची