अभी अभी जड़ था कबूतर
वर्फ की पहाड़ सी परत में
अभी अभी हुआ है चेतन
सूर्य के पहले प्रकाश में
रोंया रोंया शुष्क था मौसम
मौत की पगडंडी पर
अभी अभी पिघला है
जीवन की ताल तलैया में
घर घर सोया पड़ा था आदमी
कुछ सुध कुछ बेसुध
अभी अभी जागा है हौसला
ताल ठोंक कर गांव गांव
शाख शाख पसरी थी रात
चंगेजी ठंड के शासन में
अभी अभी हिनहिनाने लगे हैं घोड़े
चल जो दिए हैं पूस के तानाशाह
The worldwide economic crisis and Brexit
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Brexit is a product of the worldwide economic recession, and is a step
towards extreme nationalism, growth in right wing politics, and fascism.
What is t...
8 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
Pavan ji aapki kavita basant ki agvani karti si pratit ho rahi hai.Badhai.
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