यह कविता मैंने रवीश कुमार जी के ब्लाग कस्बा पर पढ़ी, तो मुझे लगा कि यह मेरे जैसों के लिए लिखी गयी है, जो दिन भर पैदल चलने के बाद भी मोटू हो रहे हैं। वैसे इसके निहितार्थ मैंने दूसरे भी निकाले और झटपट इस पर कमेंट लिखने बैठ गया। लेकिन यह क्या हुआ, पूरे दिन खबरों की रेलमपेल से भन्नाया हुआ भेजा इस कदर ताजा हुआ कि कमेंट तुकबंदी में चला गया और रवीश जी ने उसे पोस्ट करने की हरी झंडी दे दी। आज एक सप्ताह बाद जब कुछ लिखने का मौका मिला तो उनकी ओरीजनल कविता के साथ अपने तुकबंदी मय कमेंट को यहां पोस्ट करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। मुझे लगा कि इसे पोस्ट करना चाहिए तो एक अलग कंसेप्ट भी सूझ गया। और वह यह कि क्या यह एक नहीं शुरूआत नही हो सकती है। हम ब्लागिए अपने-अपने ब्लाग जितनी तन्मयता से लिखते और इसे समय देते हैं, उतनी तबज्जो दूसरे ब्लागों को नहीं देते। किसी के भी ब्लाग पर चले जाओ, टिप्पणी से पता चल जाता है कि केवल इसलिए औपचारिकता निभायी गयी है कि दूसरा भी आपके ब्लाग पर आकर एक टिप्पणी दे जाए। जबकि एक विचार को लेकर की जाने वाली टिप्पणियां ब्लाग और समाज में बहस का मंच खड़ा कर सकती हैं और समृद्ध होते इस प्लेटफार्म को न्यूज चैनलों और अखबारों से ज्यादा सार्थक बना सकती हैं। क्या पता किसी दिन विस्तार और आधार पाने के बाद टिप्पणियां साहित्य में जगह बनाने लगें।
तुम बहुत मोटे हो गए हो..व्हाट इज़ रांग विद यू
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इक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा, हवायें ले उड़ेंगी मुझे
बादलों पे मेरा घर होगा, भूख से बिलखते इंसानों की तरह
अंदर धंसा हुआ पेट होगा, गड्ढे हो जायेंगे दोनों गालों में
ग़रीबी रेखा से नीचे के रहने वालों जैसा मेरा स्तर होगा
खाये पीये अघाये लोगों के बीच मैं किसी हीरो की तरह
बड़े आदर के साथ, मचलती नज़रों के बीच बुलाया जाऊंगा
इक जिन जब मैं पतला हो जाऊंगा, हवायें ले उड़ेंगी मुझे
Posted by ravish kumar at Friday, October 03, 2008 7 comments
Pawan Nishant said...
एक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा
खंभे पर लटका मिलूंगा या
तारों पर चल रहा होऊंगा,
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के जैसी
सड़क की तरह बिछा मिलूंगा अपने गांव में
पर नहीं जाऊंगा दूसरे शहर
सबसे पहले अपने अंदर के आदमी से लड़ूंगा
और दोनों को लड़ते देख सकूंगा साक्षी भाव से
एक दिन जब मैं पतला हो जाऊंगा
पतले आदमी का पसीना
इत्र की तरह खुश्बू बिखराता जाएगा
गांव,मोहल्ला,गली,दिल्ली और कोलकाता तक
और अगले चुनाव में समर्थन देने से पहले
प्रकाश करात को सौ जगह दस्तखत करने पड़ेंगे
पतले आदमी के जिस्म पर
pawan nishant
http://yameradarrlautega.blogspot.com
October 5, 2008 12:49 AM
The worldwide economic crisis and Brexit
-
Brexit is a product of the worldwide economic recession, and is a step
towards extreme nationalism, growth in right wing politics, and fascism.
What is t...
8 वर्ष पहले
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