गुरुवार, 1 जनवरी 2009

विचलित हुआ नया खून

नव वर्ष की आत्मीय शुभकामनाओं के साथ--
अच्छा हुआ
आ तो गया पूस
धुन भी गयी जड़ कपास

अच्छा हुआ
फुटपाथियों को भी याद आयी रुई
गर्म हो गयी कल्लू की दुकान

अच्छा हुआ
जम गयीं लाल रक्त कणिकाएं
किसी के हिंसक आह्वान पर

अच्छा हुआ
सब एकमत तो हुए
एक रजाई की वजह से

अच्छा हुआ
विचलित हुआ नया खून
ऋतु के गिरते तापमान में।।

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

शब्दों के माध्यम से भाव और िवचार का श्रेष्ठ समन्वय िकया है आपने ।

आपको नववषॆ की बधाई । नया आपकी लेखनी में एेसी ऊजाॆ का संचार करे िजसके प्रकाश से संपूणॆ संसार आलोिकत हो जाए ।

मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Himanshu Pandey ने कहा…

संध्या जी के ब्लोग से यहां आया हूं. टिप्पणी जो आपने वहां दी थी, ध्यान खिंच गया.

बड़ी प्रभावी कविता और अत्यन्त ही महत्वपूर्ण यह पंक्तियां-
"अच्छा हुआ
विचलित हुआ नया खून
ऋतु के गिरते तापमान में।।"

धन्यवाद.

sandhyagupta ने कहा…

Samay se vartalap karti, har nabj ko chuti, jeevan se bhari rachna ke liye badhai swikaren.

Nav varsh mangalmay ho!

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मेरे बारे में

mathura, uttar pradesh, India
पेशे से पत्रकार और केपी ज्योतिष में अध्ययन। मोबाइल नंबर है- 09412777909 09548612647 pawannishant@yahoo.com www.live2050.com www.familypandit.com http://yameradarrlautega.blogspot.com
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