सोमवार, 29 सितंबर 2008

अपना इक़बाल गवां रही है यूपीऐ सरकार

केंद्र की यूपीए सरकार अपने कार्यकाल के चौथे साल में भी सत्ता विरोधी लहर से सुरक्षित मानी जा रही थी, लेकिन पांचवे साल के छह महीने ऊपर चढ़ते-चढ़ते उसकी इमेज दरकने लगी है। महंगाई, श्री राम सेतु और श्राइन बोर्ड विवाद ने यूपीए को इतना पीछे नहीं धकेला था, जितना लगातार हो रहे आतंकी ब्लास्ट औऱ उन पर उसके नेताओं की बयानबाजी ने धकेल दिया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यूपीए के घटक दल और खुद कांग्रेस के मंत्री अपना बोरिया बिस्तर बंधते देखने लगे हैं और सत्ता में फिर से वापसी की खातिर अपने मूल राजनैतिक विचार को सुरक्षित राष्ट्र संचालन के कर्तव्य पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं।
अब मान लिया जाना चाहिए कि हर आतंकी ब्लास्ट केंद्र की यूपीए सरकार को कमजोर तो कर ही रहा है, उसके मंत्रियों की बौखलाहट भी बढ़ाने का काम कर रहा है। लगातार हो रहे बम विस्फोट से इतर पूरे यूपीए में अगर कोई मंत्री अपनी संवेदनशीलता, सूझबूझ और परिपक्वता के मामले में अपनी छवि को प्रकट कर पाया है तो वह अकेले विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी हैं, किंतु यूपीए की इस मामले में गिर रही साख को सहारा देने के मामले में उनका कोई योगदान शायद नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता भी है तो फिर यूपीए के उन मंत्रियों को नकारा ही समझा जाएगा, जो अपने विभागों का दायित्व संभाल रहे हैं। वैसे इसकी भी शुरूआत प्रणव के उस बयान से हो गयी है, जो उन्होंने दिल्ली ब्लास्ट पर गृहमंत्री को नैपथ्य में रखते हुए खुद आगे आकर दिया।
गृह मंत्री शिवराज पाटिल और उनके नायब श्री प्रकाश जायसवाल बंगलुरू से शुरू हुए ब्लास्ट के बाद दिल्ली के अंतिम ब्लास्ट तक हाईस्कूल में पेपर देने वाले उस परीक्षार्थी की घबराहट का डिस्प्ले कर रहे हैं, जो पहली बार बोर्ड परीक्षा में बैठने जा रहा है। बीते शनिवार को दिल्ली में हुए ब्लास्ट के बाद दिल्ली सरकार के एक मंत्री का न्यूज चैनलों पर यह कहना भी अखर गया कि हर किसी को पुलिस सुरक्षा नहीं दी जा सकती।
शिवराज पाटिल और दिल्ली सरकार के एक मंत्री के बयान में दीन-हीन सचाई के दर्शन होते हैं। वेशक शिवराज पाटिल माइल्ड प्रोफाइल वाले मंत्री हैं, लेकिन अगर वह अपने इस बयान को कि मैं चीखूं, चिल्लाऊं या गाली दूं को अपने श्री मुख में ही स्थान दिए रहते तो उनकी किंकर्तव्यविमूढ़ वाली इमेज नुमायां नहीं होती। उस बयान में उनकी झल्लाहट भी प्रतीत होती है। अच्छा ही हुआ कि शनिवार को ब्लास्ट के बाद मीडिया में मोर्चा प्रणव मुखर्जी ने संभाला।
गृह मंत्रालय संभालने वाले दोनों मंत्रियों की जहां तक बात है तो ब्लास्ट मामलों के बाद भी केंद्रीय सत्ता प्रतिष्ठान के इस महत्वपूर्ण मंत्रालय और उसके मंत्रियों की भागदौड़ भी नजर नहीं आ रही, कार्यवाही का दिखना और जनता द्वारा उसका महसूस किया जाना तो दूसरी बात है। सपा और लोजपा नेताओं का अबू बशर के घर जाना, मानव संसाधन मंत्री द्वारा जामिया के कुलपति का खुलकर समर्थन करना कुछ ऐसे बयान हैं, जिनका ढीलापन केंद्रीय सत्ता की बखिया उधड़ने के समान नजर आ रहा है। जामिया के कुलपति जो कुछ कर रहे हैं, वह भी राष्ट्रवाद की श्रेणी में हो सकता है, लेकिन अर्जुन सिंह ने अपनी छवि जो मुस्लिम परस्त बना रखी है, वह चुनाव के समय यूपीए और खासकर कांग्रेस को भारी पड़ सकती है।
सत्ता में आसन जमाए राजा को ऐसे समय में जब प्रजा अपनी सुरक्षा के लिए राजा और उसके सम्मुख चलने वाले दरबारियों द्वारा किए जा रहे क्रिया-कर्म पर नजर गढ़ा देती है और हौसला अफजाई की उम्मीद करती है, केंद्रीय सरकार का व्यवहार आस तोड़ने वाला है। दरअसल सत्ता संगठन पोटा के बनस्वित वर्तमान कानून के नरम होने के एहसास को महसूस तो कर रहा है, लेकिन अब क्या करें। साढ़े चार साल का महत्वपूर्ण समय निकल गया है और अगले पांच महीनों में कानून बनाने की सफल कवायद नहीं की जा सकती।
यूपीए की स्थिति जंगल के राजा बने उस बंदर जैसी है, जो आग लगने पर एक पेड़ से दूसरे पर उछल कूद तो खूब कर रहा है, पर आग बुझाने की तालीम उसने नहीं ली है। कहीं ऐसा न हो कि परमाणु करार का लाभ चुनाव आते-आते इस आग में भस्म हो जाए और फिर सत्तासीन मंत्री कहें कि क्या करें, हमारी भागदौड़ में तो कोई कमी नहीं थी।
पवन निशान्त
09412777909

1 टिप्पणी:

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .
शनिवार को दिल्ली मैं हुए बम धामाकों मैं गृह मंत्री का ब्यान देने से मुंह मोड़ लेना , उनकी असफलता और जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेना है . वैसे भी हारे हुए गृहमंत्री को जनता ने देश की सुरक्षा जिम्मेदारी ताओ नही दी थी .

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पेशे से पत्रकार और केपी ज्योतिष में अध्ययन। मोबाइल नंबर है- 09412777909 09548612647 pawannishant@yahoo.com www.live2050.com www.familypandit.com http://yameradarrlautega.blogspot.com
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