कवि ने लिखी सचमुच की कविता
और सपने में मिला उसे पुरस्कार
कवि ने कैनवस पर उतारे शब्द चित्र
मन में कुलबुला गयी कोई पीड़ा
कवि ने हाथों-हाथ लिया उसे
पर सिर चढ़कर बोली
उसकी गरीबी
कवि ने बख्शी उसे उसकी इज्जत
पर कवि के लिए रचे गए
पीड़ा के छंद
कवि ने अग्नि से पूछा उसका संताप
और जल उठे उसके अपने रक्त संबंध
कवि ने जाननी चाही
हवाओं से उनकी थकान
और ढेर हो गया उसका अपना हमसफर
कवि जब चुप हुआ तो
बड़बड़ाने लगी उसकी कविता
-क्या सबेरे के सूरज में
कवियों के पुरखों का उजाला शामिल नहीं है
The worldwide economic crisis and Brexit
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Brexit is a product of the worldwide economic recession, and is a step
towards extreme nationalism, growth in right wing politics, and fascism.
What is t...
8 वर्ष पहले
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