शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

क्या तुम्हारे शहर में भी है एक नदी..

आधे अगस्त से लेकर शुरूआती सितंबर तक यमुना वास्तव में नदी हो गयी थी। इतनी बैलौस, हंसोड़, अल्हड़, शोख और मदमाती कि उसके यौवन पर हर कोई मचल उठे। पर मेरे शहर में तो यमुना मां रूप में है। उन पच्चीस दिनों में यमुना ने जाने अपनी बीती कितनी सदियां जी लीं। जाने कैसे गीत गुनगुनाए यमुना ने कि परिंदों का कलरव घाट किनारे लौट आया। बादलों के रेवड़ जितने दिन बरसे उसी के ऊपर बरसे और हवाओं के जमघट भंगड़ियों की मिजाज पुर्सी करने में थकते नहीं रुके। कितने मखमली थे वे पच्चीस दिन और जाने कैसे लौट आए थे सालों बाद कि जिस शहर में मुंबई जैसी चौपाटी न हो या जयपुर का जंतर-मंतर न हो कि वहां कोई प्रेमी युगल अपने दुखों में कुछ पल एकांत वास कर मन का बोझ भी हल्का कर सके और वहां उन पच्चीस दिनों में जाने कितने जोड़े नावों में बैठकर वहां तक गए, जहां घाट खत्म हो जाते हैं और यमुना किनारे के जंगल की शुरूआत होती है। मैंने हर रोज प्यार करने वालों को उन जंगलों से उनके जीवन की शुरूआत करते पाया। कोई कितना भी थका-थका आया उन दिनों घाटों पर, लौटा ताजगी के साथ और खुशी में। तैराकी सीखने में बच्चों के आगे बाढ़ के स्वरूप का भय नहीं था तो पचास साल तक के प्रौढ़ रेलवे पुल और घाट किनारे की कोठियों से छलांग लगाने में रोज व्यस्त रहे।
वे पच्चीस दिन वास्तव में ऐसे दिन रहे कि जब यमुना ने किसी से कोई सवाल नहीं किया। न मुझसे, न किसी से और न खुद से। ये वे दिन थे, जब उसने जी भर कर खुद में डुबकी लगायी और हमारे मन और आत्मा की उन गहराइयों को भी गीला किया, जो न जाने कब से मात्र गीले पौंछे की तमन्ना लिए जी रही थी। सालों बाद ऐसे दिन लौटे, जब हर दिन मैं अपने हिस्से के दुख उसे देता गया और उसने आंचल पसार कर हंसी-हंसी ओढ़ लिए। एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ, जब मैं अपना कोई दुख विश्राम घाट से वापस लेकर लौटा।
मां की जवानी लौटते देख उसके मानस पुत्रों ने भी उसका श्रंगार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रोली, सौभाग्यदायक मेंहदी, चूड़ी, बिंदी लगायी, मेकअप किए। आचमनी ली, भोग लगाए और हर-हर गंगे की डुबकी। चुनरी मनोरथ भी खूब हुए।
मथुरा पुरी में यात्री-परदेसी तो हर रोज आते हैं, पर उन दिनों जाने कैसे मंत्र हवाओं में तैर रहे थे और जाने कौन सा वशीकरण उन्हें मोह रहा था कि पंडों-पुरोहितों को दान-दक्षिणा पहले से और अब से ज्यादा मिली। बिहार के दरभंगा, समस्तीपुर, पटना, रांची, धनबाद और उस कोसी नदी के किनारे वाले श्रद्दालु भी हर साल की तरह आए और उन दिनों उन पर भी यमुना के ऐसे मनमोहक और गदराए स्वरूप को सहेजकर ले जाने की ललक थी कि पाप से उरण कराने के लिए उन्होंने पंडों से मांग-मांग कर आशीष लिए। उन्हें क्या पता था कि उनकी अपनी कोसी उनसे इतनी रुष्ट हो जाएगी कि न आंगन छोड़ेगी, न घर, न घर की छत और न छत पर बैठे उनके उस नन्हें बालक को जो दो-चार साल बाद मथुरा पुरी का यात्री हो सकता था।
खैर, यमुना कभी इतनी गुस्सैल नहीं रही। इसके कई कारण हैं। यमुनोत्री से शुरू होकर समंदर में समाने तक यमुना का कोई एकमात्र तीर्थ है तो मथुरा पुरी ही है और उसका भी एकमात्र घाट-विश्राम घाट। फिर वह यहां अपने पूरे परिवार के साथ बिराज रही है। यम द्वितीया पर यमफांस से उरण कराने वाली पतित पावनी यमुना का भाई यम यहीं बैठा है तो कालिंदी का भाई शनि भी यहीं जमा हुआ है कोकिलावन में। बहन के घर शनिदेव की इत्ती महत्ता बढ़ गयी है कि हर कोई आजकल दौड़ा-दौड़ा आ रहा है, इस आस में कि बहन के घर आया भाई खाली हाथ नहीं लौटाएगा। मांगोगे तो कुछ देकर ही पिंड छुड़ाएगा। सोलह हजार रानियों में यमुना महारानी को अपनी पटरानी बनाने वाले राजाधिराज द्वारिकाधीश भी तो यहीं बिराज रहे हैं। जिस ओर यमुना जी ने कभी अपनी अल्हड़ जवानी में कदम बढ़ाए होंगे, वहीं से, ठीक उसी दिशा से उसके पिता भाष्कर भगवान नित्य प्रहरी की तरह निकलते हैं।
यह ठीक है कि यमुना अब बुढ़ा गयी है। पतित पावनी यमुना खुद पतिता हो गयी हैं। इतनी जर्जर काया की हो गयी है यमुना कि गुस्सा करने का उसमें सामर्थ्य भी नहीं रहा। इसका एहसास हमें हो या न हो, पर सरकार और उसके नुमाइंदों को जरूर है। जैसे अमेरिका की लेहमन ब्रदर्स और एआईजी के दिवालिया होने के बाद भारतीय वित्त मंत्री ने झूठ बोला कि इंडिया की अर्थव्यवस्था सुरक्षित है। जिस तरह बंगलुरू, जयपुर, सूरत, अहमदाबाद और दिल्ली के आतंकी ब्लास्ट के बाद भारत के गृहमंत्री ने झूठ बोला कि देश सुरक्षित है, ठीक उसी तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर चल रही यमुना कार्ययोजना के अधिकारी झूठ बोलने में पीछे नहीं हैं।
दस साल पहले जिस गोकुल बैराज को इस लिए बनाया गया था कि यहां पानी रोका जाएगा तो घाटों पर यमुना जल का आचमन लेना सुलभ होगा, वहां यमुना एक गंदा नाला बनकर रह गयी है। जापान के सहयोग से यहां तीस करोड़ रुपए एसटीपी-एसपीएस बनाने में खर्च किए गए और हर साल एक करोड़ इन्हें संचालित करने में खर्च हो रहे हैं, इसके बावजूद बीओडी, सीओडी दस साल के मुकाबले सौ-पचास गुना बढ़ी हुई है। अवैध कट्टीघर को सरकार बंद तो नहीं करा पायी, हां, हाईकोर्ट में जरूर शपथ पत्र लगा हुआ है और हर तारीख पर एक झूठा शपथ पत्र जमा हो जाता है। सरकारी मशीनरी तो ऐसी है ही, हाईकोर्ट ने भी दस साल में यह संज्ञान लेने की जहमत नहीं उठायी कि उसके आदेश किन फाइलों में फना पड़े हैं। वहां तो बस पड़ रही है तारीख पर तारीख।
मैं एक ऐसे शहर में हूं, जो तीन लोक से न्यारा कहा जाता है। दस साल से यमुना पर रिपोर्टिंग करते-करते अब उसकी खबरों की रि-साइकिलिंग सी हो गयी है। यहां की खबरें अखबारों के लोकेलाइजेशन में यहीं दफन हो जाती हैं। न लखनऊ तक पहुंचती हैं और न इलाहाबाद तक। मैं अपनी बीट तो बदल सकता हूं, पर आस्था और संस्कार कैसे बदलूं। यह नदी जो काली-कलूटी है, सभ्यता ने लूटी है, इसी के यमुना जल ने बनाया था मेरे अंदर हीमोग्लोबिन। इसी के जलकणों से बना है शरीर को बढ़ाने वाला जीवाणु। और आत्मा के अनहद नाद में शामिल है इसी की लहरों का स्पंदन। वे पच्चीस दिन मुझे तो मेरी स्मृति में कल्प दे गए हैं। तुम्हारी नदी तुम्हें इतना प्यार करती है तो तुम भी छोड़ोगे अपनी कैंचुरी। एकदिन।।

3 टिप्‍पणियां:

Neeraj Rohilla ने कहा…

पवन जी,
नमस्कार !!!
अपने शहर मथुरा के किसी ब्लागर को पढकर बहुत खुशी हो रही है । मैं अपने शोधकार्य के चलते देश से बाहर हूँ लेकिन मेरे माता-पिता मथुरा में ही राधा नगर (कृष्णा नगर के सामने) में रहते हैं । पिताजी बैंक आफ़ बडौदा, कोतवाली रोड शाखा में कार्यरत हैं ।

आपके बारे में अन्य जानकारी का इन्तजार रहेगा और अब तो आपके ब्लाग पर आना जाना बना रहेगा ।

कृपया हो सके को वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा ले, टिप्पणी करने में असुविधा होती है ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया आलेख! हम भी माँ नर्मदा के साये में रहते हैं हालांकि सम्प्रति की वजह से देश से बाहर हैं पर आंचल की छांव का अहसास जिन्दा है.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

बहुत अछा आलेख है...पढ़कर अच्छा लगा...

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पेशे से पत्रकार और केपी ज्योतिष में अध्ययन। मोबाइल नंबर है- 09412777909 09548612647 pawannishant@yahoo.com www.live2050.com www.familypandit.com http://yameradarrlautega.blogspot.com
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